पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/१३३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
(११९)


३—सायर उप्परि तणु धरइ तलि घल्लै रैणाइॅं।
सामि सुभुच्चुभि परिहरइ सम्माणे ख़ल्लाइॅं॥

सायर=सागर। उप्परि=ऊपर। तगु=तृण। धरइ=रखता है। तलि=नीचे। घल्लै=डालता है। रैणाइँ=रत्नों को। सामि=स्वामी। सुभुच्चुभि=सुन्दर भृत्य को। परिहरइ=त्यागता है। सम्माणे=सम्मान करता है। खलाइं=खलों को।

सागर ऊपर तृण धारण करता है और नीचे रत्नों को डाल देता है। इसी प्रकार स्वामी सुन्दर भृत्यों को छोड़ देता है और खलों का सम्मान करता है।

४—वायसु उड्डावन्तिए पिउ दिट्ठउ सहसत्ति।
अद्धा बलया महिहि गय अद्धा फुट्टु तड़त्ति॥

वायसु=कौवा। उड्डावन्तिए=उड़ाती हुई। पिउ=पति। दिट्ठउ=देखा। सहसत्ति=सहसा इति, एकबएक। अद्धा=आधा। बलया=कड़ा (चूड़ी)। महिहि=पृथ्वी पर। गय=गिरगई। फुट्‌टु=फूटगई। तड़त्ति=तड़ से।

कौआ उड़ाने वाली स्त्री ने सहसा प्यारे को देखा, आधी चूड़ी पृथ्वी पर गिर गई और आधी तड़ से फूट गई॥

५—भमरु म रुणि झुणि अण्णदइ सा दिसि जोइ मरोइ।
सा मालइ देसन्तरिय जसु तुहुँ मरइ वियोइ॥

भमरू=भ्रमर। म=मत। रुणिझुणि=रुनझुन शब्द कर। अण्णदइ=अरण्य में। सा=वह। दिशि=दिशा। जोइ=देख कर। रोइ=रो। मालइ=मालती। देसन्तरिय=देशान्तरित हो गई। जसु=जिसके लिये। तुहुँ=तू। मरइ=मरता है। वियोइ=वियोग में।

भ्रमर! अरण्य में रून झुन शब्द मत कर। उस दिशा को देख कर मत रो। वह मालती देशान्तरित हो गई जिसके वियोग में तू मरता है॥

सब से प्राचीन पुस्तक पुण्ड या पुष्प के अलंकार ग्रन्थ अथवा खुमान रासों के पद्यों का कोई उदाहरण अब तक प्राप्त नहीं हो सका। इस लिये इनकी रचनाओं के विषय में कुछ लिखना असम्भव है। भुआल कवि का