पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/१६५

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इसका विशेष ज्ञान उनकी रचनाओं को पढ़ कर होता है। उनके कतिपय पद्यों को देखिये:—

१—माधव कत परबोधव राधा।
हा हरिहा हरि कहतहिँ बेरि बेरि अब जिउ करब समाधा।
धरनि धरिये धनि जतनहिं बैसइ पुनहिं उठइ नहिं पारा।
सहजइ बिरहिन जग महँ तापिनि बौरि मदन सर धारा।
अरुण नयन नीर तीतल कलेवर विलुलित दीघल केसा।
मंदिर बाहिर कर इत संसय सहचरि गनतहिं सेसा।
आनि नलिनि केओ रमनि सुनाओलि केओ देई मुख पर नीरे।
निस बत पेखि केओ सांस निसारै केओ देई मन्द समीरे।
कि कहब खेद भेद जनि अन्तर घन घन उतपत साँस।
भनइ विद्यापति सेहो कलावति जीउ बँधल आसपास।
२—चानन भेल विषम सररे भूषन भेल भारी।
सपनहुं हरि नहिं आयल रे गोकुल गिरधारी।
एकसरि ठाढ़ि कदम तर रे पथ हेरथि मुरारी।
हरि चिनु हृदय द्गध भेल रे आमर भेल सारी।
जाह जाह तोहिं ऊधव हे तोहि मधुपुर जाहे।
चन्द बदनि नहि जीवत रे बध लागत काहे।
३—के पतिया लए जायतरे मोरा पिय पास।
हिय नहि सह असह दुखरे भल साओन मास।
एकसर भवन पिया बिनुरे मोरा रहलो न जाय।
सखियन कर दुख दारुनरे जग के पतिआय।