पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/२०७

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हौं क्या सालाहीकिरम जन्तु बड्डी तेरी बडियाई।
तू अगम दयालु अगम्मु है आपि लेहि मिलाई।
मैं तुझ बिन बेला को नहीं, तू अंति सखाई।
जो तेरी सरणागती तिन लेहि छुड़ाई।
नानक बे परवाहु है किसु तिल न तमाई।
संगति संत मिलाये। हरि सरि निरमलि नाये।
निरमलि जलि नाये मैलु गँवाये भये पवित्र सरीरा।
दुर मति मैल गई भ्रम भागा हौं मैं विनठी पीरा।
नद्रि प्रभू सत संगति पाई निज घर होआ बासा।
हरि मंगल रसि रसन रसाये नानक नाम प्रगासा।
गुरु रामदासजी
गावहु राम के गुण गीत।
नाम जपत परम सुख पाइये आवागवणु मिटै मेरे मीत,
गुण गावत होवत परगास, चरण कमल महँ होय निवास।
सत संगति महँ होइ उधार, नानक भव जल उतरसि पार।
गुरु अर्जुन जी
प्रानी नारायन सुधि लेह।
छिनु छिनु औधि घटै निसि बासरु बृथा जात है देह।
तरुनापो बिखियन स्यों खोयो बालापन अज्ञाना।
विरध भयो अजहूँ नहिं समझै कौन कुमति उरझाना।
मानुस जन्म दियो जेहिँ ठाकुर सो तैं क्यों विसरायो।
मुकति होति नर जाके सुमिरे निमख न ताको गायो।
माया को मदु कहा करतु है संग न काहू जाई।
नानक कहत चेतु चिन्तामणि होइ है अन्त सहाई।
गुरु तेग़ बहादुर