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पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/२०६

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भाव का द्योतक उनका हिन्दी भाषा का पद्य है, पहले पद्य में भी, जो पंजाबी भाषा का है, हिन्दी शब्दों का प्रयोग देखा जाता है। और उनकी यह प्रणाली उनके हिन्दू भाषा के अनुराग की स्पष्ट सूचक है। उनके बाद उनके जितने उत्तराधिकारी हुये उनमें यह प्रवृत्ति उत्तरोत्तर बढ़ती दृष्टिगत होता है। दूसरी तीसरी और चौथी गद्दियों के गुरुओं की रचनायें अधिकांश हिन्दी शब्दों से गर्भित हैं। पांचवी गद्दी के अधिकारी गुरु अर्जुन जी की रचनायें तो सामयिक हिन्दी भाषा का ही उदाहरण हैं। नवीं गद्दी के अधिकारी गुरु तेगबहादुर के भजन तो बिल्कुल हिन्दी भाषा में ही लिखे गये हैं। उनके पुत्र दसवीं गद्दी के अधिकारी गुरु गोविन्द सिंह ने हिन्दी भाषा में एक विशाल ग्रन्थ ही लिख डाला जो आदिग्रन्थ साहब के ही बराबर है और दशम ग्रन्थ कहलाता है। यथा स्थान इस विषय का वर्णन विशेषरूप से आपको आगे मिलेगा। इस समय मैं कुछ पद्य दूसरी गद्दी से लेकर पाँचवीं गद्दी और नवीं गद्दी के अधिकारियों के नीचे लिखता हूं। आप देखें उनमें किस प्रकार उत्तरोत्तर हिन्दी भाषा को अधिक स्थान मिलता गया है।

जासुख तासहु रागियो दुख भी संभालै ओइ।
नानक कहै सियाणिये यों कन्त मिलावा होइ॥

गुरु अंदग।

तू आपे आप सभु करता कोई दजाहोयसु औरो कहिये।
हरि आपे बोले आपि बुलावे हरि
आपे जलि थलि रवि रहिये।
हरि आपे मारे हरि आपे छोड़े मनहरि सरणी पड़ि रहिये।
हरि बिनु कोई मारि जीवालि न सक्कै
मन है निचिंद निस्चलु होइ रहिये।
उठंदिया बहंदिया सुतिया सदा हरि नाम ध्याइये।
जन नानक गुरु मुख हरि लहिये।

गुरु अमरदास