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पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/२२७

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( २१३ ) भाषा अधिकतर साफ सुथरी है और सरसता उसमें पर्याप्त मात्रा में पाई जाती है।

पहले कुतबन की रचना ही देखिये। वे लिखते हैं: ...

साहु हुसैन अहै बड़ राजा, छत्रसिंहासन उनकोछाजा ।
पंडित औ बुधिवंतसयाना, पढ़े पुरान अरथ सब जाना।
धरम जुधिष्ठिरउनकोछाजा, हमसिरछाँह कियो जगराजा।
दानदेह औ गनत न आवै, बलि औ करन न सरवरि पावै।

नायक के स्वर्गवास होजाने पर नायिकाओं की दशा का वर्णन वे यों करते हैं:-

रुक्मिनि पुनि वैसहि मरिगयी, कुलवंती सतसों सति भई
बाहर वह भीतर वह होई. घर बाहर को रहै न जोई ।
विधिकर चरित न जानइ आनू,जो सिरजासोजाहि नियानू

उर्दू की शाइरी में आप देखेंगे कि उसके कवि फ़ारस की सभ्यता के ही भक्त हैं। वे जब प्राकृतिक दृश्यों का वर्णन करते है तो फ़ारस के ही दृश्यों को सामने लाते हैं। साक़ी व पैमाना बुलबुल व कुमरो, सगे व शमसाद, शमा व फानूस. जवांनाने चमन व उरूसाने गुलशन नरगिस वसुम्बुल, फरहाद व मजनू. मानी व बहज़ाद, ज़बाने सुराही व खन्दए कुलकुल वगैरः उनके सरमायये नाज़ हैं। आम तौर से वे इन्हीं पर फ़िदा हैं,शाज़ व नादिर की बात दूसरी है । हज़रत आज़ाद इन्हीं की तरफ़ इशारा कर के फ़रमाते हैं: -

"इनमें बहुत सी बातें ऐसी हैं जो खास फ़ारस और तुर्किस्तान के मुल्कों से तबई और जातो तअल्लुक रखती हैं। इसके अलावा बाज़ खाया- लात में अकसर उन दास्तानों या किस्सों के इशारे भी आगये हैं जो खास मुल्क फ़ारस से तअल्लुक रखते हैं । इन ख्यालों ने और वहां की तशबीहों