मलिक मुहम्मद जायसी भी चले, किन्तु प्रतिभा और भावुकता में उनका
स्थान इन लोगों से बहुत ऊँचा है । जिस उच्च कोटि का कवि-कम्र्म पद-
मावत में दृष्टिगत होता है उन लोगों के ग्रन्थ में नहीं। उन लोगों की
रचनाओं में वह कमी पायी जाती है जो आदिम कृतिओं में देखी जाती
है। उन लोगों को यदि मार्ग-प्रदशन करने का गौरव प्राप्त है तो पदमावत
के कवि को उसे पुष्टता प्रदान करने का। यह बात देखी जाती है कि
हिन्दी भाषा में हिन्दू जाति की प्रेम-कथाओं को अंकित करने में प्रेम-
मार्गी सूफ़ी कवियों ने जैसे हिन्दू भावों के सुरक्षित रखने की चेष्टा की है
वैसे ही मुख्य भाषा को हिन्दी रखने का भी उद्योग किया है। और इसी
मनोवृत्ति के कारण उन्होंने आवश्यकतानुसार सँस्कृत शब्दों को भो ग्रहण
किया। उस समय उर्दू भाषा का जन्म भी नहीं हुआ था । इसलिये
उन्होंने अपनी रचनाओं में थोड़े से आवश्यक फ़ारसी अरबी शब्दों को
ही स्थान दिया, जिससे हिन्दी भाषा के मुख्य रूपमें व्याघात नहीं हुआ।
जो आधार इस प्रकार पहले निश्चित हुआ था उसके सबसे प्रभावशाली
प्रवर्त्तक मलिक मुहम्मद जायसी हैं । उनके बाद भा प्रेम-कथायें अवधी
भाषा में लिखी गई । परन्तु कोई उस उच्च पद को नहीं प्राप्त कर सका जिस
पर मलिक मुहम्मद जायसो अब तक आसीन हैं। मैंने ऊपर लिखा है
कि जायसो की भाषा कई कारणों से सदोष हो गयी है और उनको भाषा
में ग्रामीणतादोष भी प्रवेश कर गया है। परन्तु अवधी भाषा पर उनका
जो अधिकार दृष्टिगत होता है और उन्होंने जिस उत्तमता में इस भाषा
में रचना करने में योग्यता दिखलाई है, वे उनके उक्त दोषों और
त्रुटियों का पूरा प्रतिकार कर देती हैं। जायसो की भावव्यञ्जना,
मार्मिकता और कवि-सुलभप्रतिभा उल्लेखनीय है। उनकी रचना में हिन्दू
भाव की मर्मज्ञता. हिन्दू पुराणों और शास्त्रों से सम्बन्ध रखनेवाले विषयों
की अभिज्ञता जैसी दृष्टिगत होती है वह विलक्षण और प्रशंसनीय है।
उन्होंने जिस सहानुभूति और निरपेक्षता के साथ हिन्दु जीवन के रहस्यों
का चित्रण किया है और वर्णनोय विषय के अन्तस्तल में प्रवेश कर के जैसी
सहृदयता दिखलायी है उसके लिये उनकी बहुत कुछ प्रशंसा की जा सकती
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