और फ़ाजिलशाह भी हुये। इन लोगों ने भी अवधी भाषा में प्रेम-मार्गी कवियों को प्रणाली ग्रहण कर रचनायें की हैं, किन्तु उनमें कोई विशेषता नहीं है और वे रचनायें मुझे हस्तगत भी नहीं हुई। इस लिये उनके विषय में विशेष कुछ नहीं लिखा जा सकता। 'उसमान चित्रावली' नामक ग्रन्थ का रचयिता है। इसकी रचना का कुछ अंश नीचे उद्धृत किया जाता है:—
'सरवर ढ़ृढ़ि सबै पचि रहीं।
चित्रिनि खोज न पावा कहीं
निकसी तीर भईं वैरागी।
धरे ध्यान सब बिनवै लागीं।
गुपुत तोहि पावहिं का जानी ।
परगट महँ जो रहै छपानी।
चतुरानन पढ़ि चारौ वेदृ ।
रहा खोजि पैपाव न भेदृ ।
हम अंधी जेहि आपु न सूझा ।
भेद तुम्हार कहाँ लौं बूझा।
कौन सो ठाँउँ जहां तुम नाहीं ।
हम चख जोति न देखहिं काही ।
पावै खोज तुम्हार सो, जेहि दिखरावहु पंथ।
कहा होइ जोगी भये, औ बहु पढ़े गरंथ।"
नूर महम्मद ने 'इन्द्रावती' नामक ग्रंथ की रचना की है। कुछ उनकी रचना का नमूना भी देखियेः—
मन दृग सों इक राति मँझारा।
सृझि परा मोहिं सब संसारा।
उँ नीक एक फुलवारी।
देखेउँ तहां पुरुष औ नारी।