पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/२४५

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दोउ मुख सोभा बरनि न जाई।
      चंद सुरुज उतरे भुंइ आई।
तपी एक देखेउँ तेहि ठाँऊँ।
       पूछेउँ तासों तिनकर नाऊँ।
कहाँ अहैं राजा औ रानी।
      इन्द्रावति औ कुंवर गियानो ।

निसार ने 'मसनवी युसुफ़-जुलेखा' नामक ग्रंथ लिखा है। उसकी कुछ पंक्तियाँ ये हैं:-

ऋतु बसंत आये बन फूला।
    जोगी जती देखि रंग भूला
पूरन काम कमान चढ़ावा ।
    बिरही हिये बान अस लावा ।
फूलहिं फूल सुखी गुंजारहिं ।
    लागे आग अनार के डारहिं ।
कुसुम केतकी मालति वासा ।
    भूले भंवर फिरइँ चहुँ पासा ।
मैं का करउँ कहाँ अब जाँऊ।
    मां कहं नाहिं जगत महं ठाँऊ ।
टेसू फूल तो किन उँजेरा ।
    लागे आग जरैं चहु ओरा।
तैसे धन बाउर भई,
    बौरे आम लतान।
मै बौरी दौरी फिरऊँ,
     सुनि कोयल कै तान।