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पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/२६६

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उनमें हृदय को द्रवित करने वाली विभूतियाँ हैं, यदि वे अन्य कहीं होंगी तो इतनी ही होंगी। वे किसी सच्चे प्रेम-पथिक की ही अनुभवनीय हैं, अन्य की नहीं। कोई रहस्यवादी बनता है, और अपरोक्ष सत्ता को लेकर निगुण में गुण की कल्पना करता है। परन्तु कल्पना कल्पना ही है, उसमें मानसिक वृत्तियों का वह सच्चा विकास कहां जो वास्तव में किसी सगुण से सम्बन्ध रखती हैं? जो आन्तरिक आनंद हम पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश के अनुभूत विभवों से प्राप्त कर सकते हैं, पञ्चतन्मात्राओं से नहीं, क्यों कि उनमे सांसारिकता है इनमें नहीं। हम विचारों को दौड़ा लें, पर विचार किसी आधार पर ही अवलम्बित हो सकते हैं। सांसारिकों को सांसारिकता ही सुलभ हो सकती है। संसार से परे क्या है? उसकी कल्पना वह भले ही कर ले, किन्तु उसका मन उन्हीं में रम सकता है जो सांसारिक विषय हैं। यही कारण है कि जो निगुणवादी बनने का दावा करते हैं वे जब आनन्दमय जीवन की कामना करते हैं तो सगुण भावों का ही आश्रय लेते हैं। सूरदास जी इसके मर्मज्ञ थे। इस लिये उन्होंने सगुण भावों को ले कर ऐसे मोती पिरोये हैं कि जिनको बहुमूल्यता चिन्तनीय है कथनीय नहीं। उन्होंने अपने लक्ष्य को प्रकाश में रखा है, अन्ध-कार में नहीं। इसी लिये उनकी रचनायें प्रेममार्गी अन्य कवियों से सरसता और मोहकता में अधिकतर स्वाभाविक हैं। उनका यह रंग इतना गहरा था कि वे कभी कभी अपनी धुन में मस्त हो कर निर्गुण पर भी कटाक्ष कर जाते हैं। यह उनका प्रमाद नहीं है, वरन् उनकी सगुण परायणता का अनन्य भाव है। मेरा विचार है कि प्रेममाग में उनकी विप्रलम्भ श्रृंगार की रचनायें बड़ा महत्व रखती हैं। यह कहना कि संसार के साहित्य में उनका स्थान सर्वोच्च है, कदाचित् अच्छा न समझा जावे, परन्तु यह मानना पड़ेगा कि संसार के साहित्य की उच्चतम कृतियों में वे भी समान स्थान लाभ करने की अधिकारिणी हैं।

१५—ब्रजभाषा की अधिकांश क्रियायें अकारान्त या ओकारान्त हैं। उसके सर्वनामों और कारक चिन्हों प्रत्ययों एवं प्रातिपदिक शब्दों के प्रयोगों में भी विशेषता है। जो उसको अन्य भाषाओं अथवा प्रान्तिक