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पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/२९६

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९-फलफूलन पूरे तरुवर रूरे कोकिल कुल कलरव वोलैं। अति मत्त मयूरी पियरस पूरी बनबन प्रति नाचत डोलैं, सारी शुक पंडित गुनगन मंडित भावनमय अर्थ बखानैं देखे रघुनायक सीय सहायक मनहुँ मदन रति मधुजानैं।

१०-मन्द मन्द धुनि सों घन गाजै।
तूर तार जनु आवझ बाजै ।'
ठौर ठौर चपला चमकैं यों।
इन्द्रलोक तिय नाचति है ज्यों।
सोहैं धन स्यामल घोर घने ।
मोहैं तिनमेॅं वक पाँति मने ।
शंखावलि पी बहुधा जलस्यों ।
मानो तिनको उगिले बलस्यों ।
शोभा अति शक शरासन में ।
नाना दुति दीसति है घन में।
रत्नावलि सी दिवि द्वार भनो ।
वरखागम बांधिय देव मनो।
घन घोर घने दसह दिसि छाये।
मघवा जनु सूरज पै चढ़ि आये।
अपराध बिनो छिति के तन ताये।
तिनपीड़न पीड़ित है उठि धाये ।
अति गाजत बाजत दुदंभि मानो।
निरघात सबै पविपात बखानो ।
धनु है यह गौरमदाइन नाहीं ।
सर जाल बहै जलधार बृथाहीं।