पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/२९६

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( २८२ ) ९-फलफूलन पूरे तरुवर रूरे कोकिल कुल कलरव वोलैं। अति मत्त मयूरी पियरस पूरी बनवनप्रति नाचत डोलैं, सारी शुक पंडित गुनगन मंडित भावनमय अर्थ बखानैं देखे रघुनायक सीय सहायक मनहुँ मदन रति मधुजानैं। १०-मन्द मन्द धुनि सों घन गाजै। तूर तार जनु आवझ बाजै ।' ठोर ठौर चपला चमक यों। इन्द्रलोक तिय नाचति है ज्यों। सोहैं धन स्यामल चार घने । मोहे तिनमें वक पाँति मने । शंखावलि पी बहुधा जलस्यों । मानो तिनको उगिले बलस्यों । शोभा अति शक शरासन में । नाना दुति दीसति है घन में। रत्नावलि सी दिवि द्वार भनो । वरखागम बांधिय देव मनो। घन चोर घने दसह दिमि छाये। __ मघवा जनु सूरज पै चढ़ि आये। अपराध बिनो छिति के तन ताये। तिनपीड़न पीड़ित है उठि धाये । अति गाजत बाजत दुदुभि मानो। निरघात सबै पविपात बखानो । धनु है यह गौरमदाइन नाहीं । सर जाल बहै जलधार बृथाहीं।