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पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/२९५

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दीपत दिपत अति साता दीप दीपियत, दूसरो दिलीप सो सुदक्षिणा को बल है। सागर उजागर को वहु बाहिनी को पति, छनदान प्रिय किधौं सूरज अमल है। सब विधि समरथ राजै राजा दशरथ, भगीरथ पथ गामी गंगा कैसो जल है।

५-तरु तालीस तमाल ताल हिंताल मनोहर । मंजुल बंजुल लकुच बकुल कुल केर नारियर । एला ललित लवंग संग पुंगीफल सोहै। सारी शुक कुल कलित चित्त कोकिल अलि मोहै । शुभ राजहंस कलहंस कुल नाचत मत्त मयूर गन । अति प्रफुलित फलित सदा रहै केशवदास विचित्र बन,

६-चढ़ा गगन तरु धाय, दिनकर बानर अरुण मुख । कीन्हों झुकि झहराय, सकल तारका कुसम बिन ।

७-अरुण गात अति प्रात, पद्मिनी प्राणनाथ भय । मानहुं केशवदास, कोकनद कोक प्रेममय । परिपूरण सिंदर पूर, कैधौं मंगल घट । किंधौं शक्र को क्षत्र, मढ़यो माणिक मयूख पट । कैशोणित कलित कपाल यह किल कापालिक कालको, यह ललित लाल कैघों लसत दिग्भामिनि के भाल को,

८-श्रीपुर में बनमध्य हौं, तृ मग करी अनीति । कहि मुॅंदरी अब तियन की को करि है परतीति ।