पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/२९५

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( २८१ ) दीपत दिपत अति साता दीप दीपियत, दूसरो दिलीप सो सुदक्षिणा को बल है। सागर उजागर को वहु बाहिनी को पति, छनदान प्रिय किधौं सूरज अमल है। सब विधि समरथ राजै राजा दशरथ, भगीरथ पथ गामी गंगा कैसो जल है। ५-तरु तालीस तमाल ताल हिंताल मनोहर । मंजुल बंजुल लकुच बकुल कुल केर नारियर । एला ललित लवंग संग पुंगीफल साहै। सारी शुक कुल कलित चित्त कोकिल अलि माहै । शुभ राजहंस कलहंस कुल नाचत मत्त मयूर गन । अति प्रफुलित फलित सदारहै केशवदास विचित्र बन, द-चढ़ा गगन तरुधाय, दिनकर बानर अरुण मुख । कीन्हों झुकि झहराय, सकल तारका कुसम बिन । ७-अरुण गात अति प्रात, पद्मिनी प्राणनाथ भय । मानहुं केशवदास, काकनद कोक प्रेममय । परिपूरण सिंदर पूर, कैधौं मंगल घट । किंधों शक्र का क्षत्र, मढ़यो माणिक मयूख पट । कैशोणित कलित कपाल यह किल कापालिक कालको, यह ललित लाल कैघों लसत दिग्भामिनि के भाल को, ८-श्रीपुर में बनमध्य हौं, तृमग करी अनीति । कहि मुंदरी अब तियन की का करि है परतीति ।