२- तनहिं राखु सतसंग में मनहिं प्रेम रस भेव।
सुख चाहत हरिबंस हित कृष्ण कल्पतरु सेव।
रसना कटौ जु अनरटौ निरखि अन फुटौ नैन।
श्रवन फुटौ जो अन सुनौ बिन राधा जसु बैन।
स्वामी हरिदास ब्राह्मण थे। कोई इन्हें सारस्वत कहता है, कोई सनाढ्य । ये बहुत बड़े त्यागी और विरक्त थे। ये निम्बार्क सम्प्रदाय के महात्मा थे। इनके शिष्यों में अनेक सुकवि और महात्मा हो गये हैं। ये गान-विद्या के आचार्य थे। तानसेन और बैजू बावरा दोनों इनके शिष्य थे। ये वृन्दावन में ही रहते थे। और बड़ी ही तदीयता के साथ अपना जीवन व्यतीत करते थे। इनके पद्यों के तीन चार संग्रह बतलाये जाते हैं। उनके कुछ पद देखिये:-
१- "गहो मन सब रस को रस सार।
लोक वेद कुल कम्मै तजिये भजिये नित्य बिहार।
गृह कामिनि कंचन धन त्यागो सुमिरो श्याम उदार।
गति हरिदास रीति संतन की गादी को अधिकार।"
२- "हरि के नाम को आलस क्यों करत है रे।
काल फिरत सर साधे।
हीरा बहुत जवाहिर संचे कहा भयो हस्ती दर बाँधे।
बेर कुबेर कछू नहिं जानत चढ़े फिरत है काँधे।
कहि हरिदास कछू न चलत जब आवत अंतक आँधे।"
अब मैं अकबर के दरबारी कवियों की चर्चा करूंगा। इनके दरबार में भी उस समय अच्छे-अच्छे सुकवि थे। मंत्रियों में रहीम खान ख़ाना,बीरबल, और टोडरमल भी कविता करते थे। दरबारी कवियों में गंग और नरहरि का नाम बहुत प्रसिद्ध है । रहीम खान खाना मुसल्मान थे। परन्तु हिन्दी भाषा के बड़े सरस हृदय कवि थे। उनकी रचनायें बड़े आदर की