करि श्रृंगार बसन भूषन सजि
फूलन रचि रचि पाग बनावति।
छुटे बंद बागे अति सोभित
बिच बिच चोव अरगजा लावति।
सूथन लाल फूँदना सोभित आजु
कि छवि कछु कहत न आवति।
विविध कुसुम की माला उर धरि
श्री कर मुरली बेत गहावति।
लै दरपन देखे श्री मुख को गोविंद
प्रभु चरनन सिर नावति।"
अष्टछाप के वैष्णवों के अतिरिक्त व्रजमंडल में दो ऐसे महापुरुष हो गये हैं जिनकी महात्माओं में गणना है। एक हैं स्वामी हित हरिवंश और दूसरे स्वामी हरिदास । हित हरिवंस जी ने राधा-वल्लभी सम्प्रदाय स्थापित किया था। इन्होंने 'राधा सुधानिधि' नामक एक संस्कृत काव्य की रचना भी की है। उनके ब्रजभाषा के ८४ पद्य बहुत प्रसिद्ध हैं। वास्तव में उनमें बड़ी सरसता है। उनके पद्यों में संस्कृत शब्द अधिक आते हैं। किन्तु उनका प्रयोग वे बड़ी रूचिरता से करते हैं । कुछ रचनायें उनकी देखिये-
१- आजु बन नीको रास बनायो।
पुलिन पवित्र सुभग जमुना तट मोहन बेनु बजायो।
कल कंकन किंकिनि नूपुर धुनि सुनि खग मृगसचुपायो।
जुवतिन मंडल मध्य श्याम घन सारँग राग जमायो।
ताल मृदंग उपंग मुरज डफ मिलिरस सिंधु बहायो।
सकल उदार नृपति चूड़ामणि सुख बारिद बरखायो।
बरखत कुसुम मुदित नभ नायक इन्द्र निसान बजायो।
हित हरिबंस रसिक राधापति जस बितान जगछायो।