पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/३१९

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काम कैवरत कैधों नासिका उडुंप बैठ्यो
खेलत सिकार तरुनी के मुखताल मैं।
लोचन सितासित मैं लोहित लकीर मानों
बाँधे जुग मीन लाल रेसम के जालमें।१।
मरकत के सूत कैघों पन्नग के पूत अति राजत
अभूत तमराज के से तार हैं।
मखतृल गुन ग्राम सोभित सरस श्याम
काम मृग कानन कै कुहू के कुमार हैं।
कोपकी किरिन कै जलज नाल नील तंत
उपमा अनंत चारु चँवर सिँगार हैं।
कारे सटकारे भींजे सोंधे सों सुगंध बास
ऐसे बलभद्र नव बाला तेरे बार हैं।२।

इसी समय में हरिनाथ, तानसेन. प्रवीण राय, होलराय, करनेस, लालनदास, मनोहर, रसिक आदि ऐसे कवि भी साहित्य क्षेत्र में आये, जो बहुत प्रसिद्ध नहीं हैं, परन्तु उनकी रचनायें सुन्दर और भावमयी हैं। सब की रचनाओं के नमूने के लिये इस ग्रन्थ में स्थान का संकोच है। जो रचनायें अधिक मधुर हैं और जिनमें कुछ विशेषता है, उनमें से कुछ नीचे लिखी जाती हैं:-

बलि बोई कीरति लता कर्ण करी द्वैपात,
सींची मान महीप ने जब देखी कुम्हलात।
जाति जाति ते गुन अधिक सुन्यो न कबहूँ कान।

सेतु बाँधि रघुवर तरे हेलादे नृप मान।

हरिनाथ

खात हैं हरामदाम करत हराम काम धाम

धाम तिनही के अपजस छावैंगे।