पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/३१८

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या घर से कबहूं न गयो पिय
दूटो तवा अरु फूटी कटौती।
२- काहे बेहाल बिवाइन सों पुनि
कंटक जाल लगे पग जोये।
हाय महादुख पायौ सखा तुम
आये इतै न कितै दिन खोये।
देख सुदामा की दीन दसा
करुना करिकै करुना निधि रोये।
पानी परात को हाथ छुयौ
नहिं नैनन के जल सों पग धोये।

केशवदास जी के बड़े भ्राता वलभद्र जी की चर्चा मैं पहले कर चुका हूं आप संस्कृत भाषा के प्रसिद्ध विद्वान् थे। आप की संस्कृत रचनायें अधिक हैं। भागवत भाष्य और वलभद्री व्याकरण आप के उत्तम ग्रन्थ हैं। इनकी बनाई हुई हनुमन्नाटक एवं गोवर्धन सप्तशती की टीकायें भी बड़ी विशद् हैं । संस्कृत के इतने बड़े विद्वान् होने पर भी आप ने हिन्दी भाषा में दो ग्रन्थ लिखे, एक का नाम है दूषण विचार और दूसरा है नखशिख । दूषण विचार सुना है कि बड़ा उपयोगी ग्रन्थ है. परन्तु मैंने इस ग्रन्थ को नहीं देखा । नखशिख सुन्दर ग्रन्थ है, और इसकी रचना बड़ी प्रौढ़ है। इसके जोड़ का नृपशंभु का नखशिख नामक ग्रन्थ है. परंतु यह ग्रन्थ उक्त ग्रन्थ के अनुकरण से ही लिखा गया है-- और भी नखशिख के ग्रन्थ हैं, परन्तु वलभद्र जी के नखशिख की समता कोई नहीं कर सका। उसके दो पद्य नीचे लिखे जाते हैं:-

पाटल नयन कोक नद के से दल दोऊ
बलभद्र बासर उनीदी लखी बाल मैं।
शोभा के सरोवर मैं बाड़वकी आभा कैधों
देवधुनि भारती मिली है पुन्य काल मैं।