"जाको जस है जगत में सबै सराहै जाहि।
ताको जीवन सफल है कहत अकब्बर साहि।
साहि अकब्बर एक समै चले,
कान्ह बिनोद बिलोचन बालहिं।
आहट ते अबला निरख्यो चकि
चौंकि चली करि आतुर चालहिं।
त्यों बलि बेनी सुधारि धरी सुभई,
छबियों ललना अरु लालहिं।
चम्पक चारु कमान चढ़ावत,
काम ज्यों हाथ लिये अहि बालहिं।"
यही नहीं, उनके दरबार के राजे महाराजे भी इस रँग में रँगे हुये थे । उनकी ब्रजभाषा की रचनायें बतलाती हैं कि जो राजे ब्रजप्रान्त से दूर के थे वे भी उसके प्रभाव से प्रभावित थे। बीकानेर के राजा के भाई पृथ्वीराज की एक रचना देखिये । आप अकबर के प्रसिद्ध दरबारी थे। उन्होंने तीन ग्रन्थ लिखे थे। उनमें से एक ग्रन्थ 'प्रेम-प्रदीपिका' का एक पद्य यह है:-
"प्रेम इकंगी नेम प्रेम गोपिन को गायो।
बचनन विरह विलाप सखी ताकी छवि छायो।
ज्ञान जोग वैराग मधुर उपदेसन भाख्यो।
भक्ति भाव अभिलाष मुख्य बनि तनु मन राख्यो।
वहुविधि वियोग संयोग सुख सकल भाव समुझै भगत।
यह अद्भुत 'प्रेम-प्रदीपिका' कहि अनंत उद्दित जगत।"
कुछ लोगों ने यह लिखा है कि महाराज मानसिंह भी ब्रजभाषा में कविता करते थे, परन्तु उनकी कोई कविता मेरे देखने में नहीं आयी।