अपरिवर्तनीय मानी गई है। और कहा गया है कि नरलोक के अति-
रिक्त उसकी व्यापकता देव लोक तक है, प्रेतलोक और पशु जाति में भी
वह सर्वत्र प्रचलित है। धार्मिक संस्कार सभी धर्मवालों के कुछ न कुछ
इसी प्रकार के होते हैं, ऐसे स्थलों पर वितण्डावाद व्यर्थ है, केवल देखना
यह है कि भाषा विज्ञान की दृष्टि से यह विचार कहां तक युक्ति संगत है,
और पुरातत्ववेत्ता क्या कहते हैं। वैदिक भाषा की प्राचीनता, व्यापकता
और उसके मूल भाषा अथवा आदि भाषा होने के सम्बन्ध में कुछ
विद्वानों की सम्मति में नीचे उद्धृत करता हू', उनसे इस विषय पर बहुत
कुछ प्रकाश पड़ेगा। निम्नलिखित अवतरणों में संस्कृत भाषा से वैदिक
संस्कृत अभिप्रेत है, न कि लौकिक संस्कृत ।
"सर्व ज्ञात भाषाओं में से संस्कृत अतीव नियमित है, और विशेषतया इस कारण अद्भुत है कि उसमें योरप की अघकालीन भिन्न भिन्न भाषाओं और प्राचीन भाषाओं के धातु हैं" मिस्टर कूवियर *
“यह देख कर कि भाषाओंकी एक बड़ी संख्या का प्रारम्भ संस्कृत से है, या यह कि संस्कृत से उसकी समधिक समानता है, हमको बड़ा आश्चर्य होता है, और यह संस्कृत के बहुत प्राचीन होने का पूरा प्रमाण है। रेडियर नामक एक जर्मन लेखक का यह कथन है कि संस्कृत सौ से ऊपर भाषाओं और बोलियों की जननी है। इस संख्या में उसने वारह भारतवर्गीय, सात मिडियन फारसी, दो अग्नाटिक अल्बानियन, सात ग्रीक, अट्ठारह लेटिन, चौदह इस क्ले वानियन और छ: गलिक कल्टिक को रखा है।”
लेखकोंकी एक बड़ी संख्या ने संस्कृत को ग्रीक और लेटिन एवं जर्मन भाषा की अनेक शाखाआंकी जननी माना है। या इन में से
"It is the most regular language known and is especially rethar- kable, as containing the roots of various languages of Europe, and the Greck, Latin, German, of Scalvonic--Baron Cwiver-Jectures on the Natural Sciences.