पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/३६

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संसार की आर्यजातीय भाषाओं के साथ वैदिक भाषा का सम्बन्ध प्रकट करने के लिये, मैं यहां कुछ शब्दों को भी लिखताहूं। संस्कृतमीडीयूनानीलैटिनअंगरेज़ीफ़ारसी

पितृपतरपाटेरपेटरफादरपिदर

मातृमतरमाटेरमेटरमदरमादर

भ्रातृतरफाटेरफेटरब्रदरबिरादर ,

नामनामओनोमानामेननेमनाम

अस्मिअह्मिऐमीएमऐमअस

अवतरणों को पढ़ने और ऊपर के शब्दों का साम्य देखकर यह बात माननी पड़ेगी, कि वैदिक भाषा अथवा आर्य जाति की वह भाषा जिसका वास्तव और व्यापक रूप हमको वेदों में उपलब्ध होता है, आदि भाषा अथवा मूल भाषा है। आज कल के परिवर्तन और नूतन विचारों के अनुसार यदि संसार भर अथवा योगेपियन भाषाओं की जननी उसे न माने तो भी आर्य परिवार की जितनी भाषायें हैं, उनकी आधार भूता और जन्मदात्री तो उसे हमें मानना ही पड़ेगा। और ऐसी अवस्था में मागधी भाषा को मूल भाषा अथवा आदि भाषा कहना कहां तक युक्ति संगत होगा आप लोग स्वयं इसको सोच सकते हैं।

पालि प्रकाश कार एक स्थान पर लिखते हैं “पालि भाषा का दूसरा नाम मागधी है, और यह उसका भौगोलिक नाम है, (पृष्ट १३ ) दूसरे स्थान पर वे कहते हैं, "मूलप्राकृत जब इस प्रकार उत्पन्न हुई, तो उसके अन्यतम भेद पाली की उत्पत्ति का कारण भी यही है, यह लिखना वाहुल्य है ( पृष्ट ४८)” इन अवतरणों से क्या पाया जाता है , यही न कि पालि अथवा मागधी से मूल प्राकृत को प्रधानता है, ऐसी अवस्था में वह आदि और मूल भाषा कैसे हुई ! तत्कालिक कथ्य वेद भाषा के साथ अनार्य भाषा का सम्मिश्रण होने से जो भाषा उत्पन्न हुई उसे वे मूल प्राकृत मानते हैं ( देखो पृष्ट० ३६ ) अतएव मूल प्राकृत भाषा कथ्य वेद भाषा की पुत्री हुई अतः वेद भाषा उसकी भी पूर्ववर्ती हुई, फिर पालि अथवा मागधी मूल