पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/३६५

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चिन्तामनि कहै आछे अच्छरनि छंद की ज्यों,
निसागम चंद की ज्यों दृग सुखदाई है ।
नगते ज्यों कंचन बसंत ते ज्यों बन की,
यों जोवन ते तन की निकाई अधिकाई है।

नीलकण्ठजी की रचनायें भी प्रसिद्ध हैं । किन्तु वे अधिकतर जटिल हैं। एक रचना उनकी भी देखियेः-

तन पर भारतीन तन पर भारतीन,

तन पर भारतीन तन पर भार हैं ।

पूजैं देव दार तीन पूर्जे देव दार तीन,

पूर्जे देवदार तीन पूजैं देवदार हैं।

नीलकंठ दारुन दलेल खां तिहारी धाक,

नाकती न द्वार ते वै नाकती पहार हैं।

आँधरेन कर गहे, बहरे न संग रहे,

बार छूटे बार छूटे बार छूटे बार हैं ।

इनमें मतिराम बड़े सहृदय कवि थे। ये भी राजा-महाराजाओं से सम्मानित थे। इन्होंने चार रीति ग्रन्थों की रचना की है। उनके नाम हैं. ललित ललाम. रस-ग़ज, छन्दसार और साहित्यसार। इनमें ललित ललाम और रस राज अधिक प्रसिद्ध हैं । इनकी और चिंतामणि की भाषा लगभग एक ही ढंग की है दोनों में वैदर्भी रीनि का सुन्दर विकास है। इनकी विशेषता यह है कि सीधे सादे शब्दों में ये कूट कूट कर रस भर देते हैं। जैसा इनकी रचना में प्रवाह मिलता है वेसा ही ओज । जेसे सुन्दर इनके कवित्त हैं वैसे हो सुन्दर सवेये । इनके अधिकतर दोहे बिहारीलाल के टक्कर के हैं. उनमें बड़ो मधुरता पायी जाती है। यदि इनके बड़े भाई चिन्तामणि नागपुर के सूर्यवंशी भोंसला मकरन्दशाह के यहां रहते थे, तो ये बून्दी के महाराज भाऊसिंह के यहां समाहत थे । इससे