पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/३६४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
(३५०)

चारों भाई साहित्य के पारंगत थे और उन्हों ने अपने समय में बहुत कुछ प्रतिष्ठा लाभ की। आजकल कुछ विवाद इस विषय में छिड़ गया है कि वास्तव में ये लोग परस्पर भाई थे या नहीं, परन्तु अब तक इस विषय में कोई ऐसी प्रमाणिक मीमांसा नहीं हुई कि चिरकाल को निश्चित बात को अनिश्चित मान लिया जावे। चिंतामणि राजा-महाराजाओं के यहाँ भी आहत थे। उन्होंने सुन्दर रोति-ग्रन्थों की रचना की है, जिनका नाम 'छन्द-बिचार', 'काव्य-विवेक', 'कविकुल कल्पतरूं' एवं 'काव्य-प्रकाश, है । उनकी बनाई एक रामायण भी है। परन्तु वह विशेष आहत नहीं हुई । कविता इनकी सुन्दर, सरस और परिमार्जित ब्रजभाषा का नमूना है । इनको गणना आचार्यों में होती है। कहा जाता है कि प्राकृत भाषा की कविता करने में भी ये कुशल थे। कुछ हिन्दी रचनायें देखियेः-

१ चोखी चरचा ज्ञान की आछी मन की जीति ।
संगति सजन की भली नीकी हरि की प्रीति ।

२- एइ उधारत हैं तिन्हें जे परे मोह
महादधि के जल फेरे ।
जे इनको पल ध्यान धरै मन ते
न पर कबहू जम घेरे ।
राजै रमा रमनी उपधान
अभै बरदान रहै जन नेरे ।
हैं बल भार उदंड भरे हरि के
भुज दंड सहायक मेरे ।

३-सरद ते जल की ज्यों दिन ते कमल की ज्यों,
धन ते ज्यों थल को निपट सरसाई है ।
घन ते सावन की ज्यों ओप ते रतन की ज्यों ।
गुन ते सुजन की ज्यों परम सहाई है ।