पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/३७४

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देर की न ताब जान होत है कबाब

बोल हयाती का आब बोलोमुख महताब से।

३-दुज्जन मद मद्दन समत्थ जिमि पत्थ दुहुँनि कर ।

चढ़त समर डरि अमर कंप थर हरि लग्गय धर ।

अमित दान दै जस बितान मंडिय महि मंडल ।

चंड भानु सम नहिं प्रभानु खंडिय आखंडल ।

कुलपति मिश्र अपने समय के प्रसिद्ध कवियों में थे उनकी गणना आचार्यों में होती है।

(५) जोधपुरके महाराज जसवन्तसिंह जिस प्रकार एक वीर हृदय भूपाल थे उसी प्रकार कविता के भी प्रेमी थे। औरङ्गज़ेब के इतिहास से इनका जीवन सम्बन्धित है। इन्हों ने अनेक संकट के अवसरों पर उसकी सहायता की थी, किन्तु निर्भीक बड़े थे। इसलिये इन्हें काबुल भेज कर औरङ्गज़ेबने मरवा डाला था। इनको वेदांत से बड़ा प्रेम था। इसलिये 'अपरोक्ष सिद्धान्त', 'अनुभव प्रकास', 'आनन्द-विलास', 'सिद्धान्तसार' इत्यादि ग्रन्थ इन्होंने इसी विषय के लिखे। कुछ लोगों की सम्मति है कि इन्होंने पारंगत विद्वानों द्वारा इन ग्रन्थों की रचना अपने नाम से कराई। परन्तु यह बात सर्व-सम्मत नहीं। मेरा विचार है, इन्हों ने ऐसे समय में जब श्रृंगार रस का स्रोत बह रहा था, वेदान्त सम्बन्धी ग्रंथ रच कर हिन्दी-साहित्य भाण्डार को उपकृत किया था । भाषा भूषण' इनका अलंकार-सम्बन्धी ग्रंथ है। इस रचना में यह विशेषता है कि दोहे के एक चरण में लक्षण और दूसरे में उदाहरण है. यह संस्कृत के चन्द्रालोक ग्रंथ का अनुकरण है, मेरा विचार है कि इस ग्रन्थ के आधार से ही इन्हों ने अपनी पुस्तक बनाई है।

कविता की भाषा व्रजभाषा है और उसमें मौलिकता का सा आनन्द है। हां, संस्कृत अलंकारों के नामों का बीच बीच में व्यवहार होने से प्रांजलता में कुछ अन्तर अवश्य पड़ गया है। कुछ स्फुट दोहे भी हैं,