पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/३७५

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उनमें अधिक सरसता पायी जाती है । दोनों के उदाहरण नीचे लिखे जाते हैं।

मुखससि वा ससि सों अधिक उदित जोति दिन राति।
सागर तें उपजी न यह कमला अपर सोहाति ।
नैन कमल ये ऐन हैं और कमल केहि काम ।
गमन करन नीकी लगै कंनक लता यह बाम ।
अलंकार अत्युक्ति यह बरनत अति सै रूप ।
जाचक तेरे दान ते भये कल्प तरु भूप ।
पर जस्ता गुन और को और विषे आरोप ।
होय सुधाधर नाहिं यह बदन सुधाधर ओप ।

महाराज जमवन्त सिंह ऐसे पहले हिन्दी साहित्यक हैं. जिन्होंने हिन्दी भाषा का एक नहीं कई सुन्दर पद्य ग्रन्थ राज्यासन पर विराजमान हो कर भी प्रदान किये। यह इस बात का प्रमाण है कि उन दिनों ब्रजभाषा प्रकार समाहत हो कर विस्तार-लाभ कर रही थी ।

(६)गोपालचन्द्र मिश्र छत्तीसगढ़ के रहनेवाले थे। इनके पुत्र का नाम माखनचन्द्र था। इन्होंने पांचग्रन्थों की रचना की थी. जिनमें से जैमिनी अशवमेघ', भक्ति-चिंतामणि' और छन्दविलास' अधिक प्रसिद्ध हैं। कहा जाता है कि एक हैहयवंशी गजा के ये मन्त्री थे ओर उनके यहाँ इनका बड़ा सम्मान था। 'छन्द-विलास' नामक ग्रन्थ वे अधूरा छोड़ गये थे। जिसे उनके पुत्र माखनचन्द्रने उनकी आज्ञासे पूरा किया था। ये सरस हृदय कवि थे और भावमयी रचना करनेमें समर्थ थे । इनके कुछ पद्य देखियेः-

१-सोई नैन नैन जो बिलोके हरि मूरति को।
सोई बैन बैन जे सुजस हरि गाइये ।
सोई कान कान जाते सुनिये गुनानुवाद
सोई नेह नेह हरि जू सों नेह लाइये ।