डुबो दिया । अच्छा होता यदि जैसे मनमोहन की ओर रसखान खिँच गये उसी प्रकार वे शेख को भी उनकी ओर खींच लाते। परंतु उसने ऐसी मोहनी डाली कि वे ही उसकी ओर खिंच गये। जो कुछ हो लेकिन स्त्री- पुरुष दोनों की ब्रजभाषा की रचना ऐसी मधुर और सरस है जो मधु-वर्षण करती ही रहती है । ब्रजभाषा-देवी के चरणों पर इस युगल जोड़ी को कान्त कुसुमावलि अर्पण करते देख कर हम उस वेदना को भूल जाते हैं जो उनके प्रमोन्माद से किसी स्वधर्मानुरागी जन को हो सकती है। इन दोनों में वृन्दावन विहारिणी युगल मूर्ति के गुणगान की प्रवृत्ति देखी जाती है। उससे भी ममर्माहत चित्त को बहुत कुछ शान्ति मिलती है, उनका जो धर्म हो, परतु युगलमृत्ति उनके हृदय में सदा विराजती दृष्टिगत होती है । औरं- गज़ेब के पुत्र मुअज्ज़म की दृष्टि में इन दोनों का अपने गुणों के कारण बड़ा आदर था। इनको कुछ मनोहारिणी रचनायें नीचे लिखी जाती हैं:-
१-जा थल कीन्हें बिहार अनेकन
ता थल कांकरी बैठि चुन्यो करैं ।
जा रसना सों करी बहु बातन
ता रसना सों चरित्र गुन्यो करैं ।
आलम जौन से कुंजन में करी
केलि तहाँ अब सीस धुन्यो करैं ।
नैनन में जो सदा रहते तिनकी
अब कान कहानी सुन्यो करैं ।
२-चन्द को चकोर देखै निसि दिन को न लेखै,
चंद बिन दिन छवि लागत अँध्यारी है।
आलम कहत आली अलि फूल हेत चलै,
काँटे सी कटीली बेलि ऐसी प्रीति प्यारी है।