को रहनेवाली थीं। इनकी पद्य रचना में खड़ी बोली का पुट भी पाया जाता है। किन्तु इन्हों ने ब्रजभाषा में ही कविता करने की चेष्टा की है। इनके कुछ पद्य नीचे लिखे जाते हैं। देखिये इनकी लगन में कितनी अधिक बिचारों की दृढ़ता है।
सुनौ दिल जानी मेड़े दिल की कहानी .
तुम दस्त ही बिकानी बदनामी भी सहूंगी मैं ।
देव पूजा ठानी मैं निवाज हूं भुलानी
तजे कलमा कुरान सोड़े गुनन गहूंगी मैं।
साँवला सलोना सिर ताज सिर कुल्ले दिये
तेरे नेह दाग मैं निदाग हो दहूंगी मैं ।
नन्द के कुमार कुरबान ताँड़ी सूरत पै
तांड़ नाल प्यारे हिंदुआनी हो रहूंगी मैं ।
२-छैल जो छवीला सब रङ्ग में रङ्गीला
बड़ा चित्त का अड़ीला कह देवतों से न्याराहै ।
माल गले मों है नाक मोती सेत सोहै कान
मोहै मनि कुडल मुकुट सीस धारा है।
दुष्ट जन मारे सन्त जन रखवारे ताहि
चित हित वारे प्रेम प्रीति कर वारा है ।
नन्द जू का प्यारा जिन कंस को पछारा
वह बृन्दावन वारा कृष्ण साहब हमारा है ।
(१०) सिताराके गजा शंभुनाथ सुलंकी भी रीति ग्रन्थकारों में से हैं। उनके एक नायिका-भेद के ग्रन्थ की बड़ी प्रशंसा है. परन्तु वह अब मिलता नहीं। उनका एक नख-शिख का ग्रन्थ भी बड़ा चमत्कारपूर्ण है वे बड़े सहृदय और कवियों के कल्पतरु थे। कविता में कभी 'नृपशंभु' और