पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/३९२

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कोटि इन्द्र इन्द्राणि साहि
साहाणि गणिज्जै ।
त्रिभुवण महीप सुर नर असुर
नेति नेति वर्णत कहत

२-प्रभु जू तो कहँ लाज हमारी ।
नील कण्ठ नर हरि नारायन
नोल बसन बनवारी ।
परम पुरुष परमेसर स्वामी
पावन पवन अहारी ।
माधव महा ज्योति मधु
मर्दन मान मुकुदं मुरारी ।
निर्विकार निर्जुर निद्रा बिन
निर्विष नरक निवारी ।
किरपासिंधु काल त्रय दरसी
कुकृत प्रनासन कारी ।
धनुर्पानि धृत मान धराधर
अन विकार असि धारी ।
हौं मति मन्द चरनसरनागत
कर गहि लेहु उबारी ।

३-जीति फिरे सब देस दिसान को
बाजत ढोल मृदंग नगारे ।