पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/३९३

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गूजंत गूढ़ गजान के सुंदर
हींसत ही ह्य राज हजारे ।
भूत भविक्ख भवान के भूपति
कौन गनै नहीं जात विचारे ।
श्री पति श्री भगवान भजे बिन
• अन्त को अन्तक धाम सिधारे ।

४-दीनन की प्रति पालि करै नित
सन्त उबार गनीमन गारै ।
पच्छ पसू नग नाग नराधिप
सर्व समै सब को प्रति पारै ।
पोखत है जल मैं थल मैं पल मैं
कलि के नहीं कर्म विचारै ।
दीन दयाल दयानिधि दोखन
देखत है पर देत न हारै ।

५-मेरु करो तृण ते मोहि जाहि
गरीब नेवाज न दूसरो तोसों ।
भूल ठमो हमरी प्रभु आप न
भूलन हार कहूं कोउ मोसों
सेव करी तुमरी तिन के सभ ही
गृह देखिये द्रव्य भरो सो।
या कलि में सब काल कृपानिधि
भारी भुजान को भारो भरोसो ।

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