पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/४०३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

( ३८९ ) मिलता । अपने अपने स्थान पर सब आदरणीय हैं, और भगवती वीणा पाणिके सभी वर पुत्र हैं । कविवर सूरदास और गोस्वामी तुलसोदास क्षण- जन्मा पुरुष हैं. उनको वह उच्चपद प्राप्त है जिसके विषय में किसी को तर्क वितर्क नहीं । इसलिये मैंने जो कुछ इस समय कथन किया है, उससे उनका कोई सम्बन्ध नहीं ।। अब मैं आप लोगों के सामने देव जो की कुछ रचनायें उपस्थित करता हूं।' आप उनको अवलोकन करें और यह बिचारें कि उनकी कविता किस कोटि की है और उसमें कितना कवि-कर्म है:- (१) पाँयन नूपुर मंजु बजै कटि किंकिनि मैं धुनि को मधुराई । साँवरे अंग लसै पट पीत हिये हुलसै बन माल सुहाई । माथे किरीट बड़े दृग चंचल मंद हँसी मुखचन्द जुन्हाई । जै जग मंदिर दीपक सुन्दर श्री ब्रज दुलह देव सहाई । (२) देव जू जो चित चाहिये नाह तो नेह निवाहिये दह हो परै । जो समझाइ सुझाइये राह अमारग मैं पग धोखे धन्यो परै। नीके मैं फीके है आँसू भरो कत ऊंचे उसास गरो क्यों भन्यो परै। रावरो रूप पियो अँखियान भरोसो भन्यो उवन्यो सो ढन्यो पर।