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पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/४०४

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(३९०)

(३) भेष भये विष भाव ते भूषन
भूख न भोजन की कछु ईछो।
मीचु की साध न सोंधे की साध
न दूध सुधा दधि माखन छी छो।
चंदन तौ चितयो नहिं जात
चुभीचित माहिं चितौन तिराछो।
फूल ज्यों सूल सिला सम सेज
बिछौनन बीच बिछी जनु बाछो।
(४) प्रेम पयोधि परे गहिरे अभिमान
को फेन रह्यो गहि रे मन।
कोप तरंगनि सों बहिरे पछिताय
पुकारत क्यों बहिरे मन।
देव जू लाज-जहाज ते कूदि
रह्यो मुख मूंदि अजौं रहि रे मन।
जोरत तोरत प्रीति तुही अब
तेरी अनीति तुही सहिरे मन।
(५) आवत आयु को द्योस अथोत
गये रवि त्यों अँधियारियै ऐहै।
दाम खरे दै खरीद करौ गुरु
मोह की गोनी न फेरि बिकै है।
देव छितीस की छाप बिना
जमराज जगाती महादुख दैहै।
जात उठी पुर देह की पैठ अरे
बनिये बनियै नहिँ रैहै।