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५---जल भरे झुमैंमानों भूमैं परसत आय दसहूं दिसान घूमैं दामिनी लये लये। धूरि धार धूमरे से धूम से धुंधारे कारे धुरवान धारे धावैं छवि सों छये छये । श्रीपति सुकबि कहै घोरि घोरि घहराहिं तकत अतन तन ताप तें तये तये । लाल बिनु कैसे लाज चादर रहेगी आज कादर करत मोहिं बादर नये नये । ६---हारि जात बारि जात मालती विदारि जात बारिजात पारिजात सोधन मैं करीसी । माखन सी मैन सी मुरारी मखमल सम कोमल सरस तन फूलन की छरी सी। गहगही गरुई गुराई गोरी गोरेगात श्रीपति बिलौर सीसींईगुर सों भरीसी। विज्जुधिर धरी सी कनक-रेख करी सी प्रवाल छबि हरी मी लसत लाल लरीसी। ७---भौंरन की भीर लैके दच्छिन समीर धीर डोलत है मंद अब तुम धौं कितै रहे । कहै कबि श्रीपति हो प्रवल वसंत मतिमंत मेरे कंत के सहायक जितै रहे। जागहि बिरह जुर जोर ते पवन है के पर धूम भूमि पै सम्हारत नितै रहे । रति को बिलाप देखि करुना अगार कछु लोचन को मूंदि कै तिलोचन चितै रहे ।