पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/४३०

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२---है अति आरत मैं बिनती,
            बहुबार करी करुना रम भोनी ।
    कृष्ण कृपानिधि दीन के बंधु,
            सुनी असुनी तुम काहे को कीनी ।
    रीझते रंचक ही गुनसों वह बानी,
            विभारि मनों अब दोनी ।
    जानि परी तुम हूं हरि जू , .
            कलि काल के दानिन की मत लीनी ।
 अमेठो के गजा गुरुदत्त सिंह ने भूपनि' नाम से कवितायं को हैं ।

उनके तीन ग्रंथ बतलाये जाते हैं। कंठभूपण' और 'ग्स रत्नाकर' दो गेतिग्रथों के अतिरिक्त उन्होंने एक सतसई भी बनाई थी। ये कवियों का बड़ा आदर सम्मान करते थे । इनकी रचनाये भी सरस हैं। दो दोहे देखिये :--- १---घंघट पट की आड़ दै हँसति जबै वहदार ।

   ससि मंडल ते कढ़ति छनि जनु पियूख की धार ।

२---भये रमाल रमाल हैं भये पुहुप मकरंद

   मान मान तोरत तुरत भ्रमत भ्रमर मद मंद ।।
 सामनाथ माथुर ब्राह्मण थे. भरतपुर दरबार में रहते थे । इनका रस

'पियपनिधि' नामक प्रसिद्ध ग्रंथ है, जिसमें काव्य के समस्त लक्षणों का विस्तृत वर्णन है । इसके अतिरिक्त इन्हों ने एक प्रवन्ध काव्य भी लिग्वा है। यह सिंहासन बतीसा का द्यबद्ध रूप है। इसका नाम सुजन बिलास है। इनके दो ग्रंथ और हैं जिनमें से एक नाटक है. जिसका नाम माधव विनोद है। दूसरे का नाम लीलावतो' है। ‘माधव विनोद का नाम भर नाटक है वास्तव में वह प्रेम-सम्बन्धी प्रबंध ग्रंथ है । इनको रचना सुन्दर और सरस है। इनका एक पद्य देखियेः--