पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/४६३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
(४४६)


बिधि हरि हर और इनसे न कोऊ
तेऊ खाट पैन सोवैं खटमलन सों इरिकै।
२—बाघन पै गयो देखि बनन मैं रहैं छकि
'साँपन पै गयो ते पताल ठौर पाई है।
गजन पै गयो धूलि डारत हैं सीस पर
'वैदन पै गयो काहू दारू ना बताई है।
जब हहराय हम हरि के निकट गये
'हरि मों सों कही तेरी मति भूल छाई है।
कोऊ ना उपाय भटकति जिन डोलै सुन
'खाट के नगर खटमल की दोहाई है।

इस शताब्दी में तीन प्रसिद्ध प्रबंधकार भी हुये हैं। एक सूदन, दूसरे व्रजवासी दास और तीसरे मधुसूदन दास। सूदन माथुर ब्राह्मण थे और भरतपुर के राजा सूरजमल के यहाँ रहते थे। भूषण और गोरे लाल के उपरांत हिन्दी संसार के वीर रस के अन्यतम प्रसिद्ध कवि सूदन ही हैं। इनका सुजान चरित्र बड़ा विशद ग्रन्थ है, इसमें उन्हों ने सूरजमल के अनेक युद्धों का वर्णन बड़ी ही ओज पूर्ण भाषा में किया है। इस ग्रन्थ की भाषा खड़ी बोल चाल मिश्रित व्रजभाषा है। इसमें उनकी पंजाबी भाषा की कुछ रचनायें भी मिलती हैं। इसका कारण यह है कि प्रसंग वश जब किसी पंजाबी से कुछ कहलाना पड़ा है तब उसको उससे उन्होंने पंजाबी भाषा में हो कहलाया है इसलिये उनकी कृति में पंजाबी शब्दोंका प्रयोग भी मिलता है। किंतु उनकी संख्या थोड़ी है। अपने इस एक ग्रंथ के कारण ही हिन्दी संसार में सुदन को वीर रस के कवियों में एक विशेष स्थान प्राप्त है। इनके ग्रंथ में नाना छंद हैं, उनमें कवित्तों की संख्या भी पर्याप्त है। दशम ग्रंथ साहब में वीर रस के जैसे 'तागिड़दं तीरं' इत्यादि छंद लिखे गये हैं उसी प्रकार और उसी ढंग के कितने छंद इस ग्रंथ में भी हैं। कुछ पद्य नीचे लिखे जाते हैं :—