पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/४६७

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लेहु लाल यह चन्द्र मैं लीन्हों निकट बुलाय ।
रोवै इतने के लिये तेरी स्याम बलाय ।
देखहु स्याम निहारिया भाजन में निकट ससि।
करी इती तुम आरि जा कारन सुन्दर सुअन ।

ताहि देखि मुसुकाइ मनोहर ।
बारबार डारत दोऊ कर ।
चंदा प्रकरत जल के माहीं ।
आवत कछू हाथ में नाहीं।
तब जल पुट के नीचे देखे ।
तहँ चंदा प्रतिक्वि न पेखे।
देखत हँसी सकल व्रज नारी ।
मगन बाल छबि लखि महतारी ।
तबहिं स्याम कछु हँसि मुसकाने ।
बहुरो माता सों बिरुझाने ।
लउँगौ री या चंदा लउँगौ ।
वाहि आपने हाथ गँहूगौ।
यह तो कलमलात जल माहीं।
मेरे कर में आवत नाहीं ।
याहर : निकट देखियत नाहीं ।
कही तो मैं गहि लावौं ताही।
कहत जसोमति सुनहु कन्हाई ।
तुअ मुख लखि मकुचत उड्डुराई।
तुम तेहि पकरन चहत गुपाला।
ताते ससि भजि गयो पताला।