जाते हैं जिससे भाषा का माधुर्य्य बहुत कुछ नष्ट हो जाता है। यत्र तत्र छन्दोभंग भी है। उनके कुछ पद्य देखिये और जो चिन्हित शब्द हैं उन पर विशेष ध्यान दीजिये।
१— चार वेद का भेद है गीता का है जीव।
चरनदास लखु आप को तोमैं तेरा पीव।
२— मुक्त होय बहुरै नहीं जीव खोज मिटि जाय।
बुंद समुंदर मिलि रहै दुनिया ना ठहराय।
३— सूछम भोजन कीजिये रहिये ना पड़ सोय।
जल थोरा सा पीजिये बहुत बोल मत खोय।
४— सतगुरु मेरा सूरमा करै शब्द की चोट।
मारे गोला प्रेम का दहै भरम का कोट।
५— धन नगरी धन देस है धनपुर पट्टन गाँव।
जहँ साधू जन उपजियो ताका बल बल जाँव।
६— जग माँही ऐसे रहो ज्यों अम्बुज सर माहिं।
रहै नीर के आसरे पै जल छूवै नाहिं।
७— दया नम्रता दीनता छिमा सोल संतोष।
इनकहं लै सुमिरन करै निहचै पावै मोख।
८— चरनदास यों कहत हैं सुनियो संत सुजान।
मुक्ति मूल आधीनता नरक मूल अभिमान।
९— चंद सूर्ज दोउ सम करै ठोढ़ी हिये लगाय।
षट चक्कर को बेध कर शून्य शिखर को जाय।
१०— व्याह दान तीरथ जो करै। बस्तर भूषण घरपगधरै।
११— दहिने स्वर झाड़े फिरै, बाएं लघुशंकाय।
मुक्ती ऐसी साधिये, दीनों भेद बताय।