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बलि नेकु रुखाई धरे कुम्हिलात
इतोऊ नहीं पहचानती हो।
कवि ठाकुर या कर जोरि कह्यौ
इतने पै बिनै नहीं मानती हौ ।
दृग बान औ भौंह कमान कहो
अब कान लै कौन पै तानती हो।
तीसरे ठाकुर बुंदेलखण्डी थे और सग्स रचना करते थे । मैं यह बतला चुका हूं कि उनकी रचनाओं के अन्त में प्रायः कहावतें आती हैं। दो पद्य उनके भी देखियेः ....
१-यह चारहूं और उदौ मुख चन्द की
चाँदनी चार निहारि लैरी ।
बलि जो पै अधीन भयो पिय प्यारी
तो ए तौ विचार विचारि लैरी ।
कवि ठाकुर चूकि गयो जु गोपाल तौ
पृ बिगरी को सम्हारि लैरी ।
अब रैहै न रैहै यहो ममयो बहती
नदी पाँव पखारि लैरी ।
२-पिय प्यार करैं जेहि पै सजनी
तेहि की सब भांतिन सैयत है ।
मन मान करौं तौ परौं भ्रम में
फिर पाछे परे पछतैयत है ।
कवि ठाकुर कौन की कासों कहों
दिन देखि दसा बिसरैयत है ।