व्रजभाषा में हैं और आजीवन उन्हों ने उसी की सेवा की। अंतिम समय में जब खड़ी बोली का प्रचार हो चुका था, उन्होंने कुछ खड़ी बोली की रचनायें भी की थीं। उनका कुछ पद्य देखिये :—
१— बगियान बसंत बसेरो कियाे
बसीये तेहि त्यागि तपाइये ना।
दिन काम कुतुहल के जे बने
तिन बीच बियोग बुलाइये ना।
घन प्रेम बढ़ाय कै प्रेम अहो
विथा वारि वृथा यरमाइये ना।
इतै चैत की चाँदनी चाह भरी
चरचा चलिबे कौ चलाइये ना।
२— अब तो लखिये अलि ए अलियन
कलियन मुख चुंबन करन लगे।
पीवत मकरंद मनाे माते,
ज्यों अधर मुधा रम मैं राते।
कहि केलि कथा गुंजरन लगे।
रम मनहूं प्रेम धन बरमत घन निज प्यारी के
करि आलिंगन लिपट लुभाय मन हरन लगे।
उनके हृदय में भी समय के प्रभाव से देश प्रेम जाग्रत था। अतएव उन्हों ने इस प्रकार की रचनायें भी की है। एक पद्य देखिये:—
जय जय भारत भूमि भवानी।
जाकी सुजस पताका जग के दमह दिसि फहरानी।
सब सुख सामग्री पूरित ऋतु सकल ममान सुहानी।
जा श्री सोभा लखि अलका अरु अमरावती खिमानी।