पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/५५८

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इस शताब्दी के आरम्भ से आज तक वह किस प्रकार उत्तरोत्तर उत्कष लाभ कर रहा है।

मैं खड़ी बोली की कविता के अन्दोलन के विषय में पहले चर्चा कर आया हूं। यह आन्दोलन सवलता से चला और उसको सफलता भी प्राप्त हुई। परंतु नियम वद्धता और स्थिरता का इसमें अभाव था। कोई ऐसा संचालक उस समय तक उसको प्राप्त नहीं हुआ था जो उसका मार्ग प्रशस्त करे और तन मन से इस कार्य में लग कर वह आदर्श उपस्थित करे जिसपर अन्य लोग चल कर उसको उन गुणाें से अलंकृत कर सकें जो सत्कविता के लिये वांछनीय होते हैं। सौभाग्य से उस समय प्रसिद्ध मासिक पत्रिका 'सरस्वती' का सम्पादकत्व लाभ कर पं° महावीर प्रसाद द्विवेदी कार्य-क्षेत्र में उतरे और उन्होंने इस दिशा में प्रशंसनीय प्रयत्न किया। कविताप्रणाली का मार्ग धीरे धीरे प्रशस्त होता है। काल पा कर ही उसकी कोई पद्धति सुनिश्चित होती है। कार्य-क्षेत्र में आने पर ज्यों ज्यों उसके दोष प्रकट होते हैं, उस पर तर्क-वितर्क और सीमांसायें होती हैं त्यों त्यों वह परिमार्जित बनती है और उसमें आवश्यकतानुसार सग्स मुंदर और भावमयो पदावली का समावेश होता है। पं° महावीर प्रमाद द्विवेदी ने जिस समय अपना कार्य्य प्रारम्भ किया उस समय हिन्दी खड़ी बोली की कविता का आरम्भिक काल था। उल्लेख व योग्य दस-पाँच पद्य-ग्रंथ उस समय तक निर्मित हुये थे और भाषा एक अनिश्चित और असंस्कृत मार्ग पर चलरही थी। प्रत्येक लेखक खड़ी बोली की कविता-रचना का एक अपना सिद्धांत रखता था और उसी के अनुसार कार्य-रत था। यह मैं स्वीकार करूंगा कि उर्दू भाषा का आदर्श उस समय सब के सामने था जो यथेष्ट उन्नत थी। किन्तु कई विशेष कारणों से उसका यथातथ्य अनुकरण हिन्दी भाषा को खड़ी बोली की कविता नहीं कर सकती थी। हिन्दी और उर्दू में बहुत साधारण अन्तर है। उर्दू की जननी हिन्दी भाषा ही है। कुछ लोगों का यह विचार है कि हिन्दी उर्दू के आदर्श पर बनी है। कम से कम मेरा हृदय इसको स्वीकार नहीं करता। उर्दू के क्रियापद अधिकांश हिन्दी भाषा के हैं। हिन्दी भाषाके सर्वनाम कारक और अनेक प्रत्यय उर्दू भाषा