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पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/५६५

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के 'स्कूल' वाले ही हैं। कोई कोई ऐसे हैं जिनका मार्ग भिन्न है। भिन्न मार्गियों में सब से पहले मेरी दृष्टि स्व° लाला भगवानदीन की ओर जाती है। इसलिये पहले मैं उनकी चर्चा करके तब आगे बढूंगा।।

१— लाला भगवानदीन प्रसिद्ध साहित्य-सेवियों में थे। प्राचीन साहित्य के अच्छे मर्मज्ञ थे। उन्हों ने कई ग्रन्थों को सुन्दर टीकायें लिखी हैं और अलंकार का भी एक ग्रंथ प्रचलित गद्यमें निर्माण किया है। वे अच्छे समालोचक भी थे। उन्हों ने पद्य में भी चार-पाँच ग्रंथ लिखे हैं। वे व्रजभाषा में ही पहले कविता करते थे। बाद को खड़ी बोली की ओर प्रवृत्त हुये। वे कायस्थ थे, इसलिये फ़ारसी ओर उर्दू का ज्ञान भी उनका यथेष्ट था। उनकी खड़ी बोली की हिन्दी कविता को विशेषता यह है कि उन्होंने उसमें उर्दू का रंग उत्पन्न करने की चेष्टा की और अ़रबी वह्रों से भी काम लिया। उनके 'वीर पञ्चग्न' और 'वीरमाता' नामक ग्रंथ ऐसे ही हैं। उनकी रचना के कुछ नमूने नीचे दिये जाते हैं:—

॥ चांदनी ॥

१— खिल रही है आज कैसी
भूमि तल पर चाँदनी।
खोजती फिरती है किसको
आज घर घर चाँदनी।
घन घटा घूँघट हटा मुसकाई
है कुछ ऋतु शरद।
मारी मारी फिरती है इस
हेतु दर दर चाँदनी।
रात को तो बात क्या दिन में
भी बन कर कुंद काम।