पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/५७७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

आघातों को क्या चिन्ताहै उठने दे उनकी झंकार। नाचे नियति प्रकृति-सुर साधे सब सुर हों शरीर साकार । देश देश में काल काल में उठे गमक गहरी गुजार । कर प्रहार हाँ, कर प्रहार तृमार नहीं यह तो है प्यार । प्यारे और कहूं क्या तुझसे प्रस्तुत हूँ मैं हूँ तैयार । मेरे तार तार से तेरी तान तान का हो विस्तार । अपनी अंगुली के धक्के से खोल अखिल श्रुतियों के द्वार । ताल ताल पर भाल झुका कर मोहित हों सब बारंबार । लय बँध जाय और क्रम क्रम से सब में समा जाय संसार । २-तम्हारी वीणा है अनमोल । हे विराट जिसके दो तू ये हैं भूगोल खगोल । दयादण्ड पर न्यारे न्यारे चमक रहे हैं प्यारे प्यारे कोटि गुणों के ताल तुम्हारे खुली प्रलय की खोल तुम्हारी वीणा है अनमोल ।