पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/५९५

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की सुशिक्षित मण्डली द्वारा प्रायः होती है। इस शताब्दी के आरम्भ में ही रहस्यवाद की कविताओं का प्रचार योरप में हुआ। उमर ख़य्याम की रूबाइयों का अनुवाद योरप की कई भाषाओं में किया गया जिससे वहाँ की रहस्यवाद की रचनाओं को और अधिक प्रगति मिली। इन्हीं दिनों भगवती वीणापाणि के वरपुत्र कवीन्द्र रवीन्द्र ने कबीर साहब की कुछ रहस्यवाद की रचनाओं का अँगरेज़ी अनुवाद प्रकाशित किया और उसकी भूमिका में रहस्यवाद की रचनाओं पर बहुत कुछ प्रकाश डाला। इसके बाद उनकी गीतांजलि के अँगरेज़ी अनुवाद का योरप में बड़ा आदर हुआ और उनको नोबल प्राइज़ मिला। कवीन्द्र रवीन्द्र का योरप पर यदि इतना प्रभाव पड़ा तो उनकी जन्मभूमि पर क्यों न पड़ता। निदान उन्हीं की रचनाओं और कीर्ति-मालाओं का प्रभाव ऐसा हुआ कि हिन्दी भाषी प्रान्तवाले भी उनकी इस प्रकार की रचनाओं का अनुकरण करने के लिये लालायित हुए। उनकी रचनाओं का असर यहाँ की छायावाद की कविताओं पर स्पष्ट दृष्टिगत होता है। कुछ लोगो ने तो उनका पद्य का पद्य अपना बना लिया है।

हमारे प्रान्त के हिन्दी भाषाके कुछ प्राचीन ग्रंथ ऐसे हैं जिनमें रहस्यवाद की रचना पर्याप्त मात्रा में पायी जाती है। ऐसी रचना उन लोगों की है जो अधिकतर सूफ़ी सम्प्रदाय के थे। इस प्रकार की सबसे अधिक रचना कबीर साहब के ग्रंथों में मिलती है। जायसी के 'पदमावत' और अखरावट में भी इस प्रकार की अधिक कवितायें हैं। यह स्पष्ट है कि इन दोनों की रचनायें सूफ़ी प्रभाव से ही प्रभावित हैं। जायसी के अनुकरण में बाद की जितने प्रबंध-ग्रंथ मुसल्मान कवियों द्वारा लिखे गये हैं उनमें भी रहस्यवाद का रंग पाया जाता है। जब देखा गया कि इस प्रकार की रचनायें समय के अनुकूल हैं और वे प्रतिष्ठा का साधन बन सकती हैं तो कोई कारण नहीं था कि कुछ लोग उनकी ओर आकर्षित न होते। इस शताब्दी के आरम्भ में सूफ़ियाना ख़्याल की जितनी उर्दू रचनायें हुई हैं उनका प्रभाव भी ऐसे लोगों पर कम नहीं पड़ा इसके अतिरिक्त इस प्रकार की रचनायें श्रृंगारस का नवीन संस्करण भी हैं।