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किसी अश्रु मय घन का हूं कन टूटी स्वर-लहरी का कम्पन।
या ठुकराया गिरा धूलि में हूँ मैं नभ का फूल।
दुख का कण हूँ या सुखका पल करुणा का घन या मरुनिर्जल
जीवन क्या है मिला कहाँ सुधि बिसरी आज समूल।
प्याले में मधु है या आसव बेहोशी है या जागृति नव।
बिन जाने पीना पड़ता है ऐसा विधि प्रतिकूल।

अब छायावाद के कुछ अग्रसर कविता लेखकों की चर्चा करता हूं:-

१- पंडित माखनलाल चतुर्वेदी आरम्भ काल से ही छायावादी कविता के प्रेमी हैं। जहां तक मेरा ज्ञान है उन्होंने जब लिखी तब छाया-वादी कविता ही लिखी। उनकी रचनायें थोड़ी हैं, परन्तु हैं बड़ी भावमयी और सुन्दर। यदि मैं भूलता नहीं हूँ तो यह कह सकता हूं कि पत्र-पत्रिकाओं में 'भारतीय आत्मा' के नाम से जितनी कवितायें निकली हैं वे सब उन्हीं की कृति हैं। चतुर्वेदी जी की वक्तृताओं में जैसा प्रवाह होता है वैसा ही प्रवाह उनकी रचनाओं में भी है। उनकी अधिकांश रचनायें मर्म-स्पर्शिनी हैं। मैं समझता हूँ, आप ही ऐसे छायावादी कवि हैं जिनकी रचनाओं में देश प्रेम का रंग यथेष्ट पाया जाता है। उनकी कुछ रचनायें देखिये:-

चाह नहीं मैं सुरबाला के गहनों में गूंथा जाऊँ।
चाह नहीं प्रेमी-माला में बिध प्यारी को ललचाऊँ।
चाह नहीं सम्राटों के शव पर हे हरि डाला जाऊँ।
चाह नहीं देवों के सिर पर चढूं भाग्य पर इठलाऊँ।
मुझे तोड़ लेना बन माली उस पथ पर तुम देना फेंक।
मातृ भूमि पर शीश चढ़ाने जिस पथ जावें वीर अनेक।

२- पं० वालकृष्ण शर्म्मा 'नवीन' छायावादी कविता करने में कुशल है। वे अपनी रचनाओं के लिये बहुत कुछ प्रशंसा प्राप्त कर चुके हैं। उनका