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हित की दृष्टि से जो बात उचित हो उसकी ओर साहित्य-ममज्ञों की दृष्टि को आकर्षित होना आवश्यक है, जिससे साहित्य लांछित होने से बचे और इसी सदुद्देश्य से इस बात की चर्चा यहाँ की गयी है।
मेरा विचार है और मुझको आशा है कि खड़ी बोली का पद्य विभाग सुविकसित होकर बहुत उन्नत होगा और वह साहित्य सम्बन्धी ऐसे आदर्श उपस्थित करेगा जो उसके सामयिक विकाश के अनुकूल होगा। यहाँ जो कुछ लिखा गया वह इसी विचार से लिखा गया कि हमारी यह आशा फलीभूत हो और इस मार्ग में जो वाधायें हैं उनका नियन्त्रण हो, और जो बातें सुधार-योग्य हों उनका सुधार हो, मुझको यह भी विश्वास है कि यदि मेरी बातों में कुछ भी सार होगा तो अवश्य वे सुनी जाँयगी और उनका प्रभाव भी होगा।
॥ तथास्तु ॥