पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/६३७

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गोकुलनाथजी की भाषाकी अपेक्षा अधिक खड़ी बोलीके शब्दों का व्यवहार मिलेगा:—

१—"तब दामोदर दास हरसानी ने बिनती कीनी जो महाराज आप याकों अङ्गीकार कब करोगे तब श्री आचार्य्य जी महाप्रभून ने दामोदरदास सों कह्यो जो यासों अब वैष्णव को अपराध पड़ैगो तौ हम याकों लक्ष जन्म पाछें अङ्गीकार करेंगे।"

२—सिद्धि, श्री १०८ श्री श्री पात साहि जी श्री दलपति जी अकबर-साह जो आम खास में तषत ऊपर विराजमान हो रहे। और आम खास भरने लगा हैं जिसमें तमाम उमराव आय आय कुर्निश बजाय जुहार कर के अपनी अपनी बैठक पर बैठ जाया करें अपनी अपनी मिसिल से।"

उक्त अवतरणों में 'करोगे', 'कहैंगे', ऊपर हो रहे, 'भरने लगा है', 'जिसमें', 'जुहार करके', 'अपनी' आदिशब्दों पर ध्यान देने से यह बात स्पष्ट हो जायगी। 'आम', 'खास', 'तमाम', उमराव', 'कुर्निश', 'मिसिल', आदि शब्दों के समावेश से हिन्दी लेखन-शैली पर राज दरबार के फारसी भाषा विषयक प्रभाव की सूचना मिलती है।

सत्रहवीं शताब्दी के आरम्भ में भक्तवर नाभादास ने गोस्वामी बिट्ठल नाथ की भाषा से मिलती जुलती भाषा लिखी। उनकी निम्नलिखित पंक्तियों के रेखाङ्कित शब्दोंकी ओर आप ध्यान दें।

तब श्री महाराज कुमार प्रथम वशिष्ट महाराज के चग्न छुइ प्रनाम करत भये। फिर अपर वृद्ध समाज तिनको प्रनाम करत भये। फिर श्री राजाधिराज जू को जोहार करि कै श्री महेन्द्र नाथ दशरथ जू के निकट बैठत भये।

इसी शताब्दी के प्रथम चरण में महात्मा तुलसी दास द्वारा लिखित एक पंच नामा मिलता है जिसमें उन्होंने यत्र-तत्र फारसी भाषा के शब्दों का भी व्यवहार किया है। उसकी कतिपय पंक्तियों को देखिये:—