पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/६३८

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सं॰ १६६९ समये कुआर सुदी तेरसी बार शुभ दिने लिलीत पत्र अनन्दराम तथा कन्हई के अंश विभाग पूर्व मु आगेजे आग्य दुनहु जमे मांगा जे आग्य भै शे प्रमान माना दुनहु जने विदित तफ़सील अंश टोडरमलु के माह जे विभाग पदु होत या........मोजे भदेनीमह अंश पाँच तेहिमँह अंशदुइ आनन्दराम तथा लहरतारा सगरेउ तथा छितुपुरा अंश टोडरमलुक तथा तमपुरा अंश टोडरमल की हील हुज्जती नाश्ती।

'तफ़सीलु', 'माह', हुज्जती' आदि शब्द फ़ारसी के हैं और तुलसीदास जो द्वारा उनका ग्रहण उनकी उस प्रवृत्ति का सूचक है जिसका अनुसरण उन्होंने यत्र-तत्र अपनी पद्यात्मक रचनाओं में भी किया है।

महाकवि देव का काव्य-रचना काल सोलहवीं शताब्दी के प्रारम्भिक वर्षों तक रहा है। इन्होंने गद्य में भी कुछ लिखा है। इनकी गद्य की भाषा में संस्कृत के तत्सम शब्दों को बहुलता दर्शनीय है। निम्न लिखित पंक्तियों को देखिये:— "महाराज राजाधिराजव्रजजन समाज विराजमान चतुर्दश भुवन विगज वेदविधि विद्या सामग्री सम्राज श्री कृष्णदेव देवाधि देव देवकी नंदन जदुदेव यशोदानन्द हृदयानंद कंसादि निकंदन वंसावतंस अंसावतार सिरोमणि विष्ठपत्रय निविष्ट गरिष्ट पद त्रिविक्रमण जगत्कारण भ्रम निवारण मायामय विभ्रमण सुररिषि संगमन गधिका रमण सेवक वरदायक गोपी गोप कुल सुखदायक गोपाल बाल मंडली-नायक अघघायक गोवर्धन धारण महेन्द्र मोहापहरण दीन जन सज्जन सग्ण ब्रह्मविस्मय विस्तरण परब्रह्म जगजन्म मरण दुःष संहरण अधमोद्धरण विश्वभरण विमल जसः कलिमल बिनासन गरुड़ासन कमल नयन चरण कमल जल त्रिलोको पावन श्री वृन्दाजन विहरण जय जय।

देव महाकवि थे और साधारण सी बात को भी अत्यन्त अलंकृत शेली में लिखने को उनकी प्रवृत्ति सर्वथा स्वाभाविक थी।

सत्रहवीं शताब्दी के अन्य लेखक, जिनके गद्य का कुछ परिचय हमें