(६२५) मिलता है, बनारसी दास और जट मल हैं। बनारसी दास की भाषामें तो खड़ी बोली की कुछ क्रियाओं का असंदिग्ध प्रयोग भी मिलता है। वे लिखते हैं:- "सम्यग् दृष्टि कहा सो सुनो । संशय विमोह विभ्रम तीन भाव जामैं नाहीं सो सम्यग् दृष्टी । संशय, विमोह. विभ्रम कहा ताकी स्वरूप दृष्टान्त करि दिखाइयतु है सो सुनो।' इन तीन वाक्यों के भीतर 'सम्यग् ', दृष्टि'. संशय, विमोह. वि- भ्रम', 'स्वरूप', 'दृष्टान्त' आदि संस्कृत के तत्सम शब्दों के प्रयोग के साथ-साथ ‘कहा', 'सुनो' आदि क्रियाओं का प्रयोग ध्यान देने योग्य है। गोरा बादल की कथा लिखने वाले जट मल की रचना में भी यही बात पायी जाती है । उनकी भाषा के दो नमूने देखियेः- १-- "हे बात की चीतौड़गड़ को गोरा बादल हुआ है, जिनकी वार्ता को किताब हिंदवी में बना कर तय्यार करी है । गोरे का भाव ग्त आवे का बचन सुन कर आपने पावन्द को पगड़ी हाथ में लेकर बाहा सती हुई सो सिवपुर में जाके बाहा दोनों मेले हुवे ।” " उस जग आलीशान बाबा राज करता है । मसीह का लड़का है सो सब पठानों में सरदार है. जयसे तारों में चन्द्रमा सरदार है ओयसा वो है। २--" ये कथा सोलः सें असी के साल में फागुन सुदी पूनम के रोज़ बनाई। ये कथा में दो रस है--वीर रस व सिंगार रस है. सो कथा मोर- छड़ो नाँव गाँव का रहनेवाला कवेसर । उस गाँव के लोग भोहोत सुखी हे। घर घर में आनन्द होता है. कोई घर में फकीर दीखता नहीं । ____उक्त अवतरण में ‘हुआ है', 'सुन कर’, ‘लेकर’, ‘हुई', 'जाके', 'हुवे', 'करता है', 'बनायो', 'रहनेवाला', होता है'. दिखता नहीं' आदि खड़ी बोली के क्रिया पदों और संज्ञा-शब्दों का व्यवहार हुआ है। साथ ही 'किताब', ‘षवन्द'. 'सरदार' आदि फ़ारसी शब्दों का समावेश इसमें भी किया गया है। जयसा' और 'ओयसा' 'जैसा' और 'वैसा' के बहुत निकट है. यह स्पष्ट है। यदि थोड़े से राजस्थानी प्रयोगों की ओर ध्यान न दिया जाय तो यह अवतरण खड़ी बोली का गद्य कहा जा सकता है।
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