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पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/६५२

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२—वियारी से उठ कर अपने कपड़े उतार दिये और अँगोछा लेकर अपनी कमर बाँधी।

३—तब उन्होंने उसके पिता से सैन किया कि तू उसका नाम क्या रखना चाहती है।

४—अर्थात् वह किरिया जो उसने हमारे पिता इब्राहीम से खायी थी।

५—यह हमारे परमेश्वर की उसी बड़ी करुणा से होगा जिसके कारण ऊपर से हम पर भोर का प्रकाश उदय होगा।

६—तब महायाजक और प्रजा के पुरनिए काइफ़ा नाम महायोजकके आंगन में इकट्ठे हुये।

७—यह देख कर उसके चेले रिसियाये और कहने लगे इसका क्यों सत्यानाश किया गया।

उक्त अवतरणों के रेखांकित शब्द ठेठ हिन्दी भाषा के हैं। 'उत्तर', 'स्त्रो', 'इच्छा', अनन्त', 'जीवन', 'आनंद', 'पिता', 'परमेश्वर', 'करुणा', 'कारण', 'प्रकाश', 'उदय', 'महायाजक', 'प्रजा' आदि संस्कृत के तत्सम शब्दों का प्रयोग भी इनमें किया गया है। एक जगह फ़ारसी से गढ़ा हुआ 'मज़दूरी' शब्द भी आया है— परन्तु यह स्वीकार करना पड़ेगा कि पादरी साहब की भाषा अपने पूर्ववर्ती लोगों से अधिक प्राञ्जल है, और उसमें खड़ी बोली का अधिकतर विशुद्ध रूप पाया जाता है। वह हरिश्चन्द्र कालिक हिन्दी के सन्निकट है। उसको देख कर यह विश्वास नहीं होता, कि उस समय किसी पादरी की लेखनी से ऐसी भाषा लिखी जा सकती है। मुझको इसमें किसी योग्यतम हिन्दू के हाथ को कला दृष्टिगत होती है॥