१८०९ ई॰ में, विलियम केटे नाम के एक पादरी ने इंजील का अनुवाद हिन्दी में 'नये धर्म-नियम' नाम से प्रकाशित किया। इस अनुवाद तथा ऐसी ही अन्य पुस्तकों के प्रकाशन का उद्देश्य यह था कि हिंदी भाषा-भाषी जनता ईसाई धर्म के सिद्धान्तों से परिचय प्राप्त करे। सदा सुखलाल और लल्लू लाल ने क्रमशः 'सुख सागर' और 'प्रेमसागर' की रचना करके धार्मिक जनता के सामने लोक प्रिय कथाओं को सरल भाषा में उपस्थित किया था, इसलिये कि जिसमें वे इधर आकर्षित हों। उनका उद्देश सफल भी हुआ। लल्लू लाल का प्रेम सागर जितना ही पाठ्य पुस्तक के रूप में आदृत था, उतनी ही धार्मिक जनता में भी उसकी प्रतिष्ठा थी। इन दोनों ग्रंथों की भाषा में फारसी भाषा के शब्दों का समावेश प्रायः नहीं के बराबर है। अतएव ईसाई धर्म-प्रचार के इच्छुकों ने भी उन्हीं की शैली का अनुसरण किया। फिर भी ईसाई पुस्तकों की भाषा में एक विशेषता देखने में आती है जो उसे पूर्व आदर्शों से कुछ पृथक करती है। वह है कुछ ऐसे शब्दों का प्रयोग। जो उसे एक ओर तो सैयद इंशा अल्लाह खां की भाषा से अलग करती है और दूसरी ओर मुंशी सदा सुख लाल और लल्लू लाल की भाषा से। ये शब्द ठेठ भाषा से लिये गये ज्ञात होते हैं। नोचे के अवतरणों को देख कर आप लोगों को मेरे कथन की सत्यता विदित होगी
१—यीशु ने उसको उत्तर दिया कि जो कोई यह जल पीएगा वह फिर पियासा होगा। स्त्री ने उससे कहा मैं जानती हूँ कि मसीह जो ख्रीष्ट कहलाता है आने वाला है।
यीशु ने उनसे कहा मेरा भोजन यह है कि अपने भेजने वाले की इच्छा पर चलूं और उसका काम पूरा करूं। क्या तुम नहीं कहते कि वे कटनी के लिये पक चुके हैं। और काटने वाला मज़दूरी पाता और अनन्त जीवन के लिये फल बटोरता है कि बोने वाला और काटने वाला दोनों मिल कर आनन्द करें।