पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/६९१

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  “परिहास-प्रियता भी इनकी अपूर्व थो । अङ्गरेजी में पहली अप्रैल का दिन मानों होलो का दिन है। उस दिन लोगों को धोखा देकर मूर्ख बनाना बुद्धिमानी का काम समझा जाता है। इन्हों ने भी कई बेर काशी बासियों को यों ही छकाया था। एक बार छाप दिया कि योरोपीय विद्वान आये हैं, जो महाराज बिजयानगरम् को कोठी में सूर्य चन्द्रमा आदि को प्रत्यक्ष पृथ्वी पर बुला कर दिखलावेंगे। लोग धोखे में गये और लज्जित हो कर हँसते हुये लौट आये। एक बेर प्रकाशित किया कि बड़े गवैये आये हैं. वह लोगों को हरिश्चन्द्र स्कूल में गाना सुनावेंगे।"
  १८-बाबू गमकृष्ण वर्मा भारत-जीवन प्रेस के संस्थापक  और  मारत-जीवन नामक साप्ताहिक पत्र के सम्पादक थे। उन्होंने उस समय इन दोनों के द्वारा हिन्दी भाषा का बहुत अधिक प्रचार किया। अपने प्रस से बहुत अधिक ग्रंथ हिन्दी भाषा के उन्होंने निकाले जो अधिकतर साहित्य से सम्बन्ध रखने वाले थे। श्री युत पंडित विजयानन्द के सहयोग से उनका भारत जोवन भी खूब चमका. और उसने हिन्दी देवी की सेवा भो अच्छो की। बाबू साहब सुलेखक ओर कवि भी थे, साथ हो सरस हृदय और भावुक भी। उनके रचे हुये ग्रंथ अब भी हैं, परन्तु खेद है कि प्रेस की उपस्थिति में भी उनमें से कुछ ग्रंथों का भी द्वितीय संस्करण भी नहीं हुआ।
  १६-मैं पहले राजा शिवप्रसाद की हिन्दीशैलो का ऊपर वर्णन कर आया हूं। उनको यह इच्छा थी. कि हिन्दी लिखने की शैली बिल्कुल बोलचाल को भाषा हो, इसलिये उन्हों ने अपनी रचना में अरबी, फ़ारसो के प्रचलित शब्दों का अधिक प्रयोग किया । आवश्यकता होने पर वे अपनी रचना में फ़ारसी-अग्बी के अप्रचलित शब्दों का भी प्रयोग करते,और संस्कृत के तत्सम शब्दों का भी। कभी वे बड़ी सीधो सरल हिन्दो लिखते, जिसमें संस्कृत के बोलचाल में गृहोत सुन्दर शब्द लाते। कभी ऐसी हिन्दी लिखने लगते जिसमें फ़ारसी अरबो के शब्दों की भरमार तो होतो हो. संस्कृत के अप्रचलित तत्सम शब्द भी भर जाते। यहो