पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/७१०

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इन्होंने भी कई उपन्यास लिखे हैं। सौन्दर्योपासक इनका सबसे अच्छा उपन्यास है और प्रशंसा भी पा चुका है। मैं समझता हूं, बिहार प्रान्त में ये पहले ऐसे लेखक हैं जिन्होंने उपन्यास लिखने में सफलता लाभ की है। बाबू जैनेन्द्र कुमार भी एक अच्छे उपन्यास और कहानी-लेखक हैं। इनको मापा ओजमयी और सुंदर होती है, और शब्द विन्यास प्रशंसनीय । इनकी भाव-चित्रण-क्षमता मी अच्छी है। हिन्दो-संसार के ये गण्य लेखकों में हैं। थोड़े दिनों से उपन्यास क्षेत्र में पं० विनोद शंकर व्यास ने भी अपनी सहृदयता का परिचय देना प्रारम्भ किया है। उन्होंने कहानियाँ भी लिखी हैं और कुछ उपन्यास भी। उनमें भावुकता है और सुझ भी। इसलिये उनको उपन्यास लिखने में सफलता मिल रही है और वे अपने को इस काय्य में योग्य सिद्ध कर रहे हैं । इनकी भाषा और भावों में एक प्रकार का आकपण पाया जाता है। बाबू गोपाल राम गहमर जासूसी उपन्यास लिखने के लिये प्रसिद्ध हैं । इन्होंने भी बहुत अधिक उपन्यास लिखे हैं और कीर्ति भी पाई है । जासूमी उपन्यास लिखने में हिन्दो संसार में इनका समकक्ष कोई नहीं पाया जाता। यह इनकी विशेषता है। इनकी भाषा चलती और सर्व-साधारण के समझने योग्य होती है। इनमें उपज और भावुकता भी है।

  मै समझता हूं । हिन्दी में जितने अधिक उपन्यास आज कल निकल रहे हैं उतने अन्य विषयों के ग्रन्थ नहीं। आज कल उपन्यास का क्षेत्र बड़ा विस्तृत है और उत्तरोत्तर बढ़ता जाता है। उपन्यासों ने हिन्दू संस्कृति को आज कल उलझनों में फंसा दिया है। आज कल की रुचि-भिन्नता अविदित नहीं। कोई हिन्दू संस्कृति का आमूल परिवतन चाहता है, कोई उसको विल्कुल ध्वंस कर देना चाहता है, कोई उसका पृष्ठ पोपक है. कोई विरोधी । किसी के विचार पर पाश्चात्य भावों का रंग गहग चढ़ा है । कोई भारतीय भावों का भक्त है। किसी के सिर पर जातीय पक्षपात का भूत सवार है और कोई सुधार के उन्माद से उन्मत्त । निदान इस तरह के भिन्न भिन्न भाव आज हिन्दू समाज के क्षेत्र में कार्य कर रहे हैं। अधिकतर समाचार पत्रों के लेख और उपन्यास ही अपने अपने विचार प्रगट करने के प्रधान