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चर्या के आधार से लिखा जाता है। इसी लिये उसको उपादेयता अधिक होती है। हिन्दी में जीवन-चरित बहुत थोड़ लिखे गये और जो लिखे गये हैं वे भा कला का दृष्टि से उच्च कोटि के नहीं कहे जा सकते । फिर भी यह स्वीकार करना पड़ेगा कि इस विषय में आगनिवासी बाबू शिवनंदन सहाय ने प्रशंसनीय कार्य किया है। उनका लिम्बा हुआ गोस्वामी तुलसा- दास ओर बाबू हरिश्चचन्द्र का जीवन चरित बहुत ही सुन्दर और अधिक- तर उपयोगी तथा गवेषणा पूर्ण है। जीवन-चरित के लिये भाषा को भी ओजस्विनो और मधुर होना चाहिये । उनको रचना में यह बात भी पायी जाता है। उन्हों ने चतन्यदेव एवं सिक्खों के दश गुरुओं को भी जीवनियां लिखी हैं। ये जीवनियाँ भी उत्तमता से लिग्बी गयी हैं इनमें भी उनकी सार ग्राहिणी प्रतिभा का विकास देखा जाता है। ये कवि भो हैं और सरस हृदय भी। इस लिये इनकी लिवा जीवनियों में उपन्यासों कासा माधुय्य आगया है। पं० माधव प्रसाद मिश्र को लिखी हुई विशुद्ध चरितावली भी आदश जीवनी है। पंडित जा की गणना हिन्दी भाषा के प्रौढ लेखका में है। विशुद्ध चरितावली की भाषामें वह औढ़ता मौजूद है। उसमें उनको लेखनी का विलक्षण चमत्कार दृष्टिगत होता है। पण्डित रामनारायण मिश्र बी० ए०. बनारस नागरी प्रचारिणी सभा के स्थापकों में से अन्यतम है। आप का बनाया हुआ 'जस्टिस गनाडे का जीवन चरित' नामक ग्रंथ भी अच्छा है। उसकी अनेक शिक्षायें उपदेश- पूर्ण हैं। पं० जी अच्छे गद्य लेखक हैं. और यथावकाश हिन्दी की सेवा करते रहते हैं । पंडित गमजी लाल शर्मा ने छोटी बड़ी कई जीवनियाँ लिग्वी हैं। जिम जीवनीमें उन्हों ने भगवान गमचन्द्र का चरित्र अंकित किया है, उसमें उनकी सहृदयता विकसित दृष्टिगत होती है। और भी बहुत सी छोटी छोठो जीवनियाँ स्वसंस्थापित हिन्दी प्रेम से उन्हों ने निकाली हैं, उनमे भी उनकी प्रतिभा की झलक मिलती है । पं० ओंकार नाथ वाजपेई ने अपने ओंकार प्रेस से छोटो छोटी अनेक जावनियाँ निकाली हैं। वे भी सुन्दर ओर उपयोगिनी हैं । राजस्थान निवासी स्व- मुंशी देवीप्रसाद ने कुछ मुसल्मान बादशाहो मीराबाई और गजा बीग्वल की जीवनी लिग्बी है और