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की जाती हैं वे पक्षपातपूर्ण होती हैं या उनमें ईर्ष्या-द्वेषमय उद्गार ही होता है। पंडित महावीर प्रसाद द्विवेदी की आलोचनाओं की चर्चा मैं पहले कर चुका हूं। उनसे जो लाभ हिन्दीसंसार के गद्य पद्य साहित्य को प्राप्त हुआ उसको चर्चा भी हो चुको है। बाबू वाल मुकुंद गुप्त भी 'एक अच्छे समालोचक थे । वर्तमान लोगों में पंडित पद्मसिंह शर्भा अच्छे समालोचक माने जाते हैं। उनकी समालोचनाएं खरी होती हैं, इस लिये सर्व प्रिय नहीं बनती। कुछ लोग नाक भी चढ़ाते ही रहते हैं। फिर भी यह कहा जासकता है कि उनकी समालोचना अधिकतर उचित और वास्तवता- मूलक होती है। पं० कृष्ण विहारी मिश्र बी०ए०, एल० एल० बी० पं० अवध उपाध्याय, डाक्टर हेम चन्द्र जोशी, बाबू पदुम लाल दखशी वी० ए० तथा पं० रामकृष्ण शुक्ल एम०ए० गम्भीर समालोचक हैं और समालोचना का जो उद्देश्य है उस पर दृष्टि रख कर अपनी लेखनी का सञ्चालन करते हैं। मैं यह जानता हूं कि इनका विरोध करने वाले लोग भी हैं, क्योंकि समालोचना कर्म ऐसा है कि वह किसी को निष्कलंक नहीं रखता । फिर भी इस कथन में वास्तवता है कि इन लोगों को समालोचनायें अधिकतर संयत और तुली हुई होती हैं। ये लोग भी मनुष्य हैं. हृदय इन लोगों के पास भी है, भावों का आघात-प्रतिघात इन लोगों के अन्तः करण में भी होता है। इस लिये सम्भव है कि उनके उद्गार कभी कुछ कटु हो जावें । परन्तु मेरा बिचार यह है कि ये लोग सचेष्ट हो कर ऐसा करने की प्रवृत्ति नहीं रखते । साहित्या वाय्य पं० शालग्राम शास्त्री भी अच्छे समालोचक हैं । उनकी समालोचना पांडित्यपूर्ण होती है । परन्तु उनको दृष्टि व्यापक है। वेसंस्कृत के विद्वान हैं और उनकी कसोटी संस्कृत की प्रणाली का रूपान्तर है। इस लिये उनका कसना भो साधारण नहीं, और उनकी तुला पर तुल कर ठोक उतर जाना भी सुगम नहीं। परन्तु वे आलोचना करते हैं बड़ो योग्यता से। पंडित किशोरीदास वाजपेयी. पं० वनारसीदास चतुर्वेदी, और बाबू कृष्णानंद गुप्त भी कभी २ आलोचना क्षेत्र में आते हैं और अपनी सम्मति निर्भीकता से प्रगट करते हैं। यह भी समालोचना का एक गुण है, चाहे वह कुछ लोगों को अप्रिय भले ही हो । समालोचना-ग्रंथों में पं० पद्मसिंह